MANUSHY CHAAHE KUCH BHI KAR LE,VAH PRAKRTI/ISHWAR/BHAAGYE,PARE NAHI JA SAKATA,JIVAN OR MRUTYU BRAHMA OR VISHNU DUARA PURV NIRDHARIT HAI #PART1
20 PARTS OF THIS STORY, WHICH IS STORY STORIES IS IMAGINARY
जीवन और मृत्यु ब्रह्मा और विष्णु द्वारा पहले से ही निर्धारित हैं
RAJA KUMAR PRAJAPATI
11/13/2025
मानव चाहे कुछ भी कर ले, प्रकृति / ईश्वर / नियति से आगे नहीं जा सकता,
जीवन-मृत्यु पहले से ब्रह्मा-विष्णु द्वारा तय होती है,
अंत में हर मनुष्य को यमराज के पास जाना ही होता है, जहाँ चित्रगुप्त उससे उसके कर्मों का लेखा-जोखा बताते हैं
भाग 1 जन्म और भविष्यवाणी
नायक विशाल का जन्म, देवताओं द्वारा पहले से तय भाग्यउसके लिए संघर्ष, अमीरी की चाह.
भाग 2 बचपन और प्रकृति का रहस्य
प्रकृति के नियम, पिता के उपदेश, रहस्यमय साधु से मुलाकात.
भाग 3 महत्वाकांक्षा का बीज
अमीरी की भूख, शिक्षा, पहला संघर्ष.
भाग 4 राक्षस-सी चाहत
धन के पीछे अंधी दौड़, गलत मार्ग पर पैर.
भाग 5 पहली हार
भाग्य की पहली चोट सब खोना.
भाग 6 ब्रह्मा-विष्णु का दर्शन (स्वप्न)
भाग्य की सच्चाई की झलक.
भाग 7 संघर्ष और राग-द्वेष
दूसरी बार उठना, फिर असफलता.
भाग 8 परिवार की हानि
प्रकृति पहला करारा जवाब देती है.
भाग 9 अकेलापन और सत्य की खोज
साधु से दीक्षा, जीवन के गूढ़ रहस्य.
भाग 10 कर्मों का परिणाम
भलाई करने की कोशिशें, पर भाग्य का पहरा.
भाग 11 चरम अहंकार
नायक अमरत्व की ओर दौड़ता है.
भाग 12 प्रकृति का प्रकोप
भीषण संकट,सब समाप्त.
भाग 13 मृत्यु का बुलावा
यमदूत का आगमन.
भाग 14 यमलोक की यात्रा
आत्मा का प्रवासडर, विस्मय, प्रश्न.
भाग 15 चित्रगुप्त का लेखा-जोखा
कर्मों का खुलासा.
भाग 16 यमराज का न्याय
पुण्य-पाप का परिणाम.
भाग 17 नर्क-लोक / स्वर्ग लोक
अनुभव, कर्मफल.
भाग 18 सीख
संसार का सबसे बड़ा सत्य.
भाग 19 पुनर्जन्म की तैयारी
आत्मा नया अवसर पाती है.
भाग 20 अंतिम सत्य संदेश
प्रकृति और भाग्य—मानव की सीमा.
भाग 1 जन्म और भविष्यवाणी
शुरुआत हमेशा शांत नहीं होती, और न ही हर जन्म साधारण,कभी-कभी एक आत्मा धरती पर उतरती है केवल इसलिए कि वह अपने भीतर छिपे भाग्य के बंधनों को समझ सके यह कहानी एक ऐसे ही मनुष्य की है—विशाल
इस कहानी के 20 भाग है जो निचे दिए गए है
भाग (1) धूल भरा गाँव और एक दिव्य रात
उत्तर भारत के पहाड़ों के बीच, बादलों और देवदार के पेड़ों से ढका हुआ एक छोटा-सा गाँव था देवकुंड गाँव छोटा था घर कच्चे थे लेकिन हवा में एक अजीब पवित्रता थी जैसे सदियों पुरानी प्रार्थनाएँ अब भी घाटियों में गूँजती हों,देवकुंड में लोग प्रकृति को देवता मानते थे
नदियाँ उनकी माता, पर्वत उनके पिता और हवा उनका संदेशवाहक,इसी गाँव में एक मध्यमवर्गीय परिवार रहता था हरिनाथ और उनकी पत्नी श्यामा उनका जीवन बहुत साधारण था मिट्टी के घर, खेत, पशु, और देवताओं पर अटूट विश्वास मगर एक वर्ष जब फाल्गुन की हवाएँ बह रहीं थीं, रात में एक अजीब घटना घटी आकाश में तारों की संख्या अचानक बढ़ती दिखी पहाड़ों पर हल्का नीला प्रकाश फैला, जैसे देवताओं का आशीर्वाद धरती पर उतर आया हो,उसी क्षण, श्यामा ने अपने प्रथम पुत्र को जन्म दिया गाँव की दाई, जो दशकों से बच्चों का जन्म देख चुकी थी, डरते-डरते बोली ये बच्चा साधारण नहीं है इसकी आँखों में गहराई है जैसे किसी ने पहले ही तय किया हो इसका रास्ता, बच्चा शांत था रोया भी नहीं बस अपनी बड़ी-बड़ी आँखों से दीवार की ओर देखता रहा, मानो उसे वहाँ कुछ दिखाई दे रहा हो जो दूसरे नहीं देख सकते, उसका नाम रखा गया विशाल,
भविष्यवाणी
तीन दिन बाद गाँव में एक साधु आया उसने सफ़ेद वस्त्र धारण किए थे, माथे पर भस्म उसकी आँखों में असीम गहराई थी वह हरिनाथ के घर पहुँचा और बिना अनुमति बोले,जहाँ एक दिव्य प्रकाश जन्म लेता है, वहाँ मैं खुद आ जाता हूँ हरिनाथ चकित“महाराज, आप”साधु ने बच्चे को गोद में लिया उसने उसकी आँखों में झाँका और फुसफुसाया भाग्य का बेटा है यह इसका रास्ता इससे नहीं, ऊपर बैठे लोग लिख चुके हैं ब्रह्मा ने इसके जन्म की कलम पकड़ी थी इसका जीवन लंबा नहीं होगा इसने बहुत कुछ पाना लिखा है और बहुत कुछ खोना भी श्यामा घबरा गई महाराज क्या इसका जीवन दुखों से भरा होगा साधु ने कोमल मुस्कान दी दुख-सुख मनुष्य नहीं चुनता दिया हुआ भोगना ही पड़ता है यह बच्चा प्रकृति को चुनौती देगा सोचेगा कि वह अपने भाग्य को बदल सकता है पर अंत में प्रकृति उसे समझाएगी
कि जो लिखा है, वही होगा यह कहकर साधु ने मस्तक पर हाथ रखा जब यह दुनिया छोड़ने लगेगा, यमराज स्वयं इसकी आत्मा को लेने आएँगे चित्रगुप्त इसकी कथा खोलेंगे और वह जान पाएगा कि मनुष्य कितना ही बड़ा क्यों न हो जाए कभी भी नियति से बड़ा नहीं हो सकता फिर साधु अचानक उठा और बोला मेरे आने का यही उद्देश्य था अब मैं जा रहा हूँ और वह पहाड़ों में विलीन हो गया लोग कहते थे कि उसे फिर कभी किसी ने नहीं देखा,
बचपन/प्रकृति से संवाद
विशाल बड़ा होने लगा दूसरे बच्चों के विपरीत, वह शांत स्वभाव का था वह अक्सर जंगलों में घूमता, नदी किनारे बैठकर पानी की लहरों से बातें करता पहाड़ों को देखकर उसे ऐसा लगता जैसे कोई उससे संवाद कर रहा हो कभी-कभी वह रात को चाँद को देखकर बोलता
तुम कहाँ से आते हो मुझे क्यों देखते हो माँ हैरान होकर पूछती बेटा, तुम किससे बात करते हो वह मुस्कुरा देता,पत्थर भी सुनते हैं माँ धीरे-धीरे गाँववालों को लगने लगा कि इस बच्चे की सोच अलग है वह न तो खेलों में रूचि दिखाता, न ही शरारत करता बस प्रकृति में खोया रहता उसके पिता हरिनाथ चाहते थे कि वह पढ़-लिखकर बड़ा आदमी बने वे उसे शहर भेजना चाहते थे पर विशाल को लगता मेरा रास्ता इससे अलग है उसने कभी किसी को दुख नहीं दिया, झूठ नहीं बोला लेकिन उसके मन के भीतर कहीं यह सवाल दिन-रात उठता साधु ने क्या कहा था मेरी नियति क्या है,
पहली परीक्षा
एक दिन तेज़ आँधी आई गाँव में कई घर टूट गए हरिनाथ के खेत बर्बाद हो गए कुछ ही महीनों में परिवार कर्ज़ में डूबने लगा श्यामा अक्सर आँसू बहाती क्या हमारे साथ हमेशा ऐसा ही होगा विशाल उन्हें चुप कराता कर्म करो माँ शायद परिणाम हमारे हाथ में नहीं है इस उम्र में इतना गहरा विचार लोग कहते यह बच्चा असाधारण है पर गरीबी बढ़ती गई हरिनाथ ने खेत बेच दिए वे शहर चले गए,
नया संसार
शहर की चकाचौंध ने विशाल को चकित किया उसने देखा कुछ लोग असीम संपत्ति में जीते हैं और कुछ भीख माँगते हैं उसने पहली बार धन की शक्ति देखी उसके भीतर एक नया बीज पड़ा धन कमाना है बहुत धन कमाना है उसे लगा अगर मैं अमीर बन जाऊँ तो अपनी माँ-पिता को इन कठिनाइयों से बचा सकता हूँ वह भटक गया उसके मन में महत्वाकांक्षा का बीज फूटा उसने सोचा भाग्य मैं अपना भाग्य खुद बनाऊँगा उसे यह नहीं पता था कि मनुष्य जो सोचता है वह हमेशा सच नहीं होता क्योंकि नियति पहले ही तय होती है ब्रह्मा और विष्णु द्वारा,
साधु की प्रतिध्वनि
एक रात उसे सपना आया नीले आकाश में वही साधु खड़ा था उसके पीछे अनंत अंधकार वह बोला भाग्य बदलना चाहोगे मानव की यही भूल है विशाल ने कहा मैं अमीर बनना चाहता हूँ साधु हँसा,मानव की चाहत कभी ख़त्म नहीं होती तुम्हें जो पाना है, वह पहले ही लिखा जा चुका है जितना दोगे, उतना मिलेगा पर अंत में सब मिट्टी हो जाएगा विशाल बोला अगर सब लिखा है तो कोशिश क्यों साधु ने गभीर स्वर में कहा कर्म करना तुम्हारी ज़िम्मेदारी है पर परिणाम तय है जो मिलेगा, वही मिलेगा विशाल चौंककर जाग गया वह नहीं समझ पाया क्या यह सपना था, या कोई संकेत,
कहानी आगे बढ़ेगी
पहला भाग यहीं समाप्त होता है यह केवल शुरुआत है आगे विशाल धन कमाने की दौड़ में भागेगा हार-जीत, भ्रम, असफलता, फिर उत्थान फिर गिरावट और अंत में मृत्यु जहाँ उसे मिलेगा यमराज और चित्रगुप्त का साक्षात्कारऔर वह समझेगा
मनुष्य चाहे जितनी भी कोशिश करे
प्रकृति और नियति से आगे नहीं जा सकता,
भाग (2) बचपन से जवानी — महत्वाकांक्षा का बीज
पहाड़ों को छोड़कर शहर में बसे कुछ वर्ष बीत चुके थे विशाल की उम्र अब 14–15 हो चली थी उसकी आँखों में हमेशा एक शून्य-सा भाव रहता,जैसे वह कुछ खोज रहा हो, पर उसे खुद नहीं पता कि वह क्या है शहर की चहल-पहल, बसों की तेज़ आवाज़, दुकानों की चमक, लोगों की भाग,दौड़ सब कुछ विशाल को अजनबी प्रतीत होता था उसके लिए जंगल का मौन, नदी की फुसफुसाहट, और पहाड़ों की विशालता कहीं अधिक परिचित थी फिर भी, जीवन ने उसे एक नए रास्ते पर धकेल दिया था जहाँ धन, प्रतिष्ठा और प्रतिस्पर्धा उसका पीछा करने लगी थीं,
शहर की सड़कों पर
हरिनाथ शहर में एक छोटी-सी दुकान में काम करने लगे श्यामा घरों में काम करने लगी विशाल को पढ़ाई के लिए एक सरकारी स्कूल में दाखिल किया गया वहाँ अक्सर शिक्षक कहते लड़का बहुत शांत है, लेकिन बहुत गहरा सोचता है उसकी टीचर सुजाता दीदी ने एक बार कहा तुम्हारे भीतर कुछ है, जिसे तुम समझ नहीं पा रहे,वो तुम्हें बहुत आगे ले जाएगा विशाल ने पूछा कौन-सी चीज़ दीदी मुस्कुराई जहाँ तक मेरा अनुमान है तुम्हें ज्ञान की तलाश है लेकिन एक दिन तुम्हें समझ आएगा ज्ञान और भाग्य में क्या फर्क है विशाल चुप हो गया वह किसी से ज्यादा बात नहीं करता था स्कूल में भी अकेला ही रहता पर एक बात थी वह पढ़ाई में अव्वल था हर विषय में खासकर दर्शन और इतिहास में वह अक्सर जीवन, मृत्यु, और नियति के बारे में सवाल पूछता जो कभी-कभी शिक्षकों को भी चौंका देता,
पिता की उम्मीदें
घर में रोज़ पैसों की तंगी रहती कई बार तो खाना भी मुश्किल हो जाता था श्यामा अपनी पुरानी साड़ी को बार-बार सुधारकर पहनती
हरिनाथ थके चेहरे से लौटते एक रात हरिनाथ बोले बेटा, तुम खूब पढ़ो एक दिन बड़ा आदमी बनो हमारी गरीबी तुम ही मिटाओगे विशाल चुप रहा उसे लगा क्या मेरी जिम्मेदारी यही है फिर मन में आवाज़ आई,
क्या मैं अपना भाग्य बदल सकता हूँ
लेकिन साधु की बात याद आतीजो लिखा है, वही होगा, वह इन दो धड़ों के बीच फँस गया था कर्म और नियति,
दोस्ती
शहर में विशाल का एक ही दोस्त बना करण उम्र समान थी, लेकिन स्वभाव बिल्कुल अलग करण जीवंत था हँसता, खेलता, स्टंट करता, सपने देखता मैं बड़ा आदमी बनूँगा, कार खरीदूँगा, बंगला बनाऊँगा विशाल अक्सर उसे चुपचाप देखता और सोचताधन से क्या सब ठीक हो सकता है एक दिन करण ने पूछा तू हमेशा इतना शांत क्यों रहता है विशाल ने कहा मैं सोचता रहता हूँ क्यों कुछ लोग गरीब पैदा होते हैं
क्यों कुछ अमीर क्यों किसी को जल्दी मौत मिलती है क्यों कोई सदा रोता है करण हँसा ये सब बातें बहुत बड़े लोग सोचते हैं हम बच्चे हैं चल, चल आइसक्रीम खाते हैं लेकिन विशाल का मन कहीं और था,
रहस्यमय साधु का पुनः संकेत
एक रात, जब सब सो रहे थे, विशाल छत पर बैठा आसमान देख रहा था तारे झिलमिला रहे थे चाँद हल्का धुंधला था अचानक उसकी आँखें भारी होने लगीं जैसे किसी ने बुलाया हो नींद और चेतना के बीच वह एक प्रकाश में पहुँचा वही साधु सामने था पहाड़ों के बीच, नदी के किनारे साधु ने कहा तुम अब भी खोज में हो विशाल बोला हाँ क्या मैं अपने भाग्य को बदल सकता हूँ साधु ने मुस्कुराकर कहा
भाग्य आकाश की तरह है तुम उसकी ओर देख सकते हो उसका अनुमान लगा सकते हो, पर उसे छू नहीं सकते तुम्हें लगता है धन तुम्हारी जिंदगी सँवार देगा पर धन केवल साधन है मार्ग नहीं विशाल ने पूछा तो मैं क्या करूँ साधु बोले जीवन को जीओ जो होना है, वह तुम्हें मिलेगा ही तुम्हें धन भी मिलेगा शक्ति भी लोग तुम्हें देखेंगे पूजेंगे पर अंत में तुम समझोगे कि ये सब क्षणिक है अंत में सबके चरण यमराज के द्वार पर रुकते हैं फिर केवल कर्म बोलते हैं यह कहकर साधु धुँए में विलीन हो गया,
महत्वाकांक्षा बढ़ती है
सपना टूटते ही वह हाँफते हुए उठा दिल तीव्र गति से धड़क रहा था उसने सोचा क्यों मुझे बार-बार वही साधु दिखाई देता है क्या वह सच्चा है या मेरी कल्पना, पर सपने ने उसके मन में एक नई आग जगा दी धन का आकर्षण उसे महसूस हुआ अगर मैं कुछ बड़ा करूँ तो मेरा परिवार अच्छा जीवन जी सकेगा उसने निश्चय किया मैं गरीबी को हराकर दिखाऊँगा वह सोचने लगा मैं पढ़ूँगा नौकरी करूँगा बहुत पैसा कमाऊँगा यही सोच उसके भीतर रोज़-रोज़ बढ़ती गई,
पहला संघर्ष
स्कूल की फीस जमा करने के लिए पैसे नहीं थे पिता दुकान से पैसे ला नहीं सके शिक्षक ने कहा अगर फीस नहीं जमा हुई, तो नाम काट दिया जाएगा विशाल और उसके माता-पिता निराश रात को घर में चूल्हा भी न जला श्यामा ने कहा खाने की चिंता छोड़ भगवान हैं न,पर विशाल को यह बात चुभी वह सोचने लगा भगवान सबका भला क्यों नहीं करते,अगली सुबह वह स्कूल नहीं गया शहर की गलियों में भटकने लगा वह अमीरों के घर देखता बड़ी कारें चमकदार कपड़े फिर फुटपाथ पर सोते बच्चों को देखता
क्यों इतना फर्क उसके अंतर्मन में आवाज़ आई शायद मैं भी एक दिन अमीर बन सकता हूँ वह खुद को समझाने लगा कर्म करूँगा तो फल मिलेगा मगर साधु की बात भी याद आती जो लिखा है, वही होगा ये दो विचार उसके भीतर टकराते रहे
पुस्तकालय की खोज
एक दिन वह सड़क पर चलता-चलता शहर के बड़े पुस्तकालय तक पहुँच गया उसने कई किताबें उठाईं जीवन, मृत्यु, भाग्य, ब्रह्मांड, वेद, उपनिषद वह धीरे-धीरे पढ़ने लगा उसे अध्यात्म में रुचि होने लगी एक किताब में लिखा था“मनुष्य जन्म तो लेता है अपने कर्मों के आधार पर, मगर जीवन की बड़ी घटनाएँ पहले से ही ब्रह्मा-विष्णु द्वारा लिखी होती हैं विशाल का मन काँप उठा उस रात उसने सोचा अगर सब तय है तो हम क्यों संघर्ष करते हैं उसके भीतर शून्य फैलता गया लेकिन अगले ही पल मन ने कहा कोशिश करना तो मेरा कर्तव्य है भले ही परिणाम नियति तय करे यही संघर्ष उसका जीवन बन गया,
करण का अलग दृष्टिकोण
करण ने एक दिन कहा तू बहुत सोचता है सोचकर कोई अमीर नहीं बना विशाल बोला फिर क्या करूँ करण हँसते हुए बोला दुनिया दबंगों की है जो साहस करे, वही पाए विशाल ने पूछा अगर साहस करे और किसी और का हिस्सा छीन ले तो करण बोला दुनिया ऐसे ही चलती है विशाल चुप हो गया उसके मन में झुंझलाहट थी उसकी सोच करण से बिलकुल अलग थी पर उसी दिन उसने महसूस किया
धन पाना आसान नहीं है लोग गलत रास्ते भी चुनते हैं उसके मन में सवाल उठे सही क्या है कर्म,भाग्य या संघर्ष,
माँ की सीख
श्यामा ने एक शाम कहा “बेटा, जो जैसा करता है, वैसा पाता है विशाल बोला पर अगर फल पहले से लिखा है तो कर्म क्यों श्यामा ने मुस्कुराते हुए कहा कर्म तुम्हारा है फल भगवान का तू अपना कर्तव्य कर बाकी प्रकृति देख लेगी उसकी यह बात विशाल के हृदय में उतर गई,
अचानक मोड़
16 वर्ष की उम्र में विशाल को पढ़ाई में अव्वल होने पर छात्रवृत्ति मिली घर में एक छोटी-सी खुशी आई हरिनाथ, जो शायद पहली बार मुस्कुराए, बोले अब मेरा बेटा कुछ बड़ा बनेगाविशाल भावुक हो गया से लगा शायद यही रास्ता है शायद वह सच में अपनी नियति को
कुछ बदल सके पर नियति मुस्कुरा रही थी क्योंकि वह आगे बहुत बड़ा खेल दिखाने वाली थी,
पिता का रोग
एक वर्ष बीता विशाल अब कॉलेज में था तभी एक दिन हरिनाथ दुकान पर बेहोश हो गए डॉक्टर ने बताया गंभीर हृदय रोग है इलाज महँगा है घर में फिर अंधेरा पैसे नहीं थे श्यामा का रो-रोकर बुरा हाल विशाल सोचता रहा मैं मेहनत कर रहा हूँ पर जिंदगी मुझे मौका क्यों नहीं देती उसी रात सपने में वही साधु आया वह बोला दुख से भाग मत यह भी नियति है। विशाल चिल्लाया क्यों हमारे ही साथ क्यों साधु ने शांत स्वर में कहा किसी का भी जीवन दुख और सुख का मिश्रण है भावनाएँ बदलती हैं कर्म चलते रहते हैं पर परिणाम पहले से तय होते हैं विशाल निर्जीव-सा खड़ा रहा,
पहली बड़ी असफलता
इलाज के लिए विशाल ने कई जगह प्रयास किए सरकार के कार्यालय, दान संस्थाएँ, लोगों से मदद किसी ने नहीं सुना आखिर हरिनाथ की मृत्यु हो गई घर में सन्नाटा श्यामा टूट गई विशाल की आँखें सूख गईं जैसे आँसू भी साथ छोड़ गए हों उसने मन में कहा अगर सब पहले से तय है तो मेरा प्रयास किस काम का अंदर कहीं क्रोध फूटने लगा भाग्य के विरुद्ध
अंतर्मन की आग
अब विशाल में एक अजीब दृढ़ता जन्मी वह सोचने लगा मैं इतना बड़ा बनूँगा कि मौत भी सोचकर आए उसके मन में धन, शक्ति, प्रतिष्ठा की आग जल उठी वह भाग्य को गलत सिद्ध करना चाहता था उसका लक्ष्य धन और सफलता वह खुद को समझाता मैं करूंगा करके दिखाऊंगा पर भीतर कहींसाधु की आवाज़ गूँजती‘जो लिखा है, वही होगा’
भाग (3 ) महत्वाकांक्षा का तूफ़ान — धन की तलाश और पहली हार
पिता की मृत्यु ने विशाल को अंदर तक झकझोर दिया था उसके भीतर मानों विश्वास का पौधा सूख चुका था वह समझ नहीं पा रहा था
क्या वाकई सब पहले से तय है अगर हाँ, तो मनुष्य संघर्ष क्यों करे पर उसी क्षण उसके भीतर एक और विचार ने जन्म लिया
“मैं भाग्य को चुनौती दूँगा”यही विचार उसके जीवन की दिशा बदलने वाला था,
कॉलेज का अंत, दुनिया का आरंभ
समय बीता कुछ वर्षों बाद विशाल ने अपनी पढ़ाई पूरी कर ली वह पढ़ाई में तेज था, लेकिन नौकरी मिलना आसान नहीं था अनेक कंपनियों में आवेदन किया कहीं जवाब नहीं, कहीं इंटरव्यू तक नहीं मिला श्यामा अब और कमजोर हो गई थी घर के खर्च बढ़ते जा रहे थे विशाल कई रातें बिना खाए सो जाता, लेकिन कभी हार नहीं मानता वह कहता मैं गरीबी को खत्म करने आया हूँ मैं नहीं डरूँगा पर नियति शांत बैठी उसकी हर चाल देख रही थी,
पहली नौकरी
आख़िरकार उसे एक छोटी-सी कंपनी में क्लर्क की नौकरी मिली तनख्वाह बहुत कम लेकिन वही उसके लिए आशा की किरण थी करीब 10 घंटे वह काम करता फिर भी, घर के लिए बस कुछ ही बच पाता उसकी माँ कहती बेटा, इतना मत थक शरीर भी भगवान ने दिया है विशाल सोचता भगवान ने शरीर दिया फिर भगवान ही दुख क्यों देता है उसके भीतर ईश्वर के प्रति आस्था कम होती जा रही थी,
धनी लोगों की दुनिया
कंपनी में अनेक अमीर व्यापारी आते-जाते वे बड़े-बड़े कारों में आते, महँगे सूट,चमकते जूते, हाथों में लाखों की घड़ियाँ विशाल उन्हें देखता और सोचता “क्यों कुछ लोग इतने अमीर हैं और कुछ मेरे जैसे जीवन भर संघर्ष में वह चाहता मैं भी ऐसा बनूँ उसके मन में
धन की चाह बढ़ती जा रही थी वह रोज़ सोचता मैं पैसा कमाऊँगा बहुत पैसा पर कैसे वह नहीं जानता था,
करण की वापसी
एक दिन विशाल का बचपन का दोस्त करण शहर आया वह अब काफी बदल चुका था अच्छे कपड़े, चेहरे पर चमक, आत्मविश्वास से भरी आवाज़ विशाल ने पूछा कहाँ था इतने साल,करण बोला मैंने बिजनेस किया जोखिम लिया और आज देख मैंने सब पा लिया विशाल चकित कैसे करण हँसकर बोला दिमाग चाहिए और थोड़ी किस्मत भी विशाल के मन में आग लगी अगर करण कर सकता है मैं क्यों नहीं करण बोला तू चाहे तो मेरे साथ काम कर पैसा कमाने का असली तरीका ये नौकरियाँ नहीं बिज़नेस है विशाल सोच में पड़ गया,
दो रास्ते
उसके सामने दो रास्ते खड़े थे नौकरी करूँ, थोड़ा-थोड़ा पैसा,धीमी प्रगति करण के साथ बिज़नेस जिसमें जोखिम था पर सफलता मिले तो धन की वर्षा।कुछ देर के मन-मंथन के बाद विशाल ने निर्णय लिया“मैं बिज़नेस करूँगा” वह सोचता यही मौका है अपनी नियति को चुनौती देने का,
शुरुआत
करण और विशाल ने मिलकर छोटा-सा व्यापार शुरू किया इलेक्ट्रॉनिक सामान की खरीद-बिक्री शुरुआत में काम अच्छा चला थोड़े ही समय में वे अच्छी आमदनी करने लगे विशाल के घर में कुछ राहत आई। श्यामा ने राहत की साँस ली बेटा भगवान भला करे लेकिन
विशाल के भीतर अहंकार जन्म लेने लगा वह सोचने लगा अगर मैं चाहूँ तो सब कर सकता हूँ उसे लगा भाग्य को हराना संभव है,पर वह भूल गया जो ऊपर है,वही अंतिम निर्णय करता है,
व्यापार का विस्तार
कुछ महीनों में उनका व्यापार बढ़ा अब वे कई शहरों में सामान भेजते मुनाफा बढ़ा,धन तेजी से आया विशाल ने माँ के लिए अच्छा घर लिया उसे अच्छे कपड़े दिए श्यामा खुश थी पर भीतर भयभीत भी वह जानती थी ज़्यादा तेज़ी सदा स्थायी नहीं होती,वह बोली
बेटा, धीरे चल बहुत तेज़ चलोगे तो गिर भी सकते हो विशाल हँसकर बोला माँ मुझे रोक मत मैं अब उड़ना चाहता हूँ श्यामा ने सिर झुका दिया वह जानती थी कि बेटा अब उसके शब्द नहीं सुनेगा,
छल का आरंभ
व्यापार अच्छा चल रहा था पर फिर समस्या आई एक बड़ा व्यापारी उनकी कंपनी से नाराज हो गया वह बोला तुम मेरे कारोबार में हस्तक्षेप कर रहे हो उसने आपूर्तिकर्ताओं को लोभ देकर विशाल और करण से सम्बंध तोड़ने पर मजबूर किया,कुछ ही हफ्तों में
बाजार का रुख बदलने लगा विशाल को पहली बार लगा दुनिया इतनी आसान नहीं करण बोला दिमाग से काम ले हम हार नहीं मानेंगे लेकिन समस्या बढ़ती गई,
धोखा
एक रात करण कुछ दस्तावेज़ लेकर विशाल के पास आया वह बोला हम एक बड़ा सौदा करेंगे जो हमें करोड़ों कमाएगा विशाल झिझका
सौदा जोखिम से भरा था अगर सफल हुआ वे अमीर बन सकते थे अगर असफल सब खत्म विशाल बोला क्या ये सही है करण मुस्कुराया क्या सही, क्या गलत इतना मत सोच अंततःविशाल मान गया,
पतन का आरंभ
सौदा हुआ लेकिन यह धोखाधड़ी थी सामान नकली निकला कंपनी पर केस हुए लोगों ने पैसे माँगे बैंक ने कर्ज़ चुकाने का दबाव बनाया विशाल टूट गया वह करण के पास गया पर करण गायब थाउसने सारा पैसा लेकर भाग लिया विशाल के पास कुछ नहीं बचा,
शून्य में वापसी
घर फिर खाली धन फिर गायब और इस बार साथ में आया,
अविश्वास और पश्चाताप
श्यामा बोली बेटा जो होता है शायद वही ठीक होता है विशाल टकराया क्या पिता की मृत्यु ठीक थी क्या करण का धोखा ठीक था वह चिल्लाया क्यों भगवान क्यों श्यामा चुप रही,
फिर वही साधु
उसी रात विशाल को फिर सपना आया पहाड़, नदी और साधु साधु बोला तू भाग्य को गलत समझ रहा है विशाल क्रोधित अगर मेरी हार पहले से तय थी तो मुझे जीत का अवसर क्यों दिया साधु शांत अवसर और परिणाम दो अलग बातें हैं तुझे मार्ग दिया गया पर तूने लोभ चुना प्रकृति तुझे देखती है हर कर्म नोट होता है हर निर्णय लिखा जाता है कर्म तेरा पर परिणाम चित्रगुप्त की पुस्तक में पहले से अंकित विशाल ने पूछा क्या मैं फिर उठ सकता हूँ साधु हर बार पर परिणाम फिर भी भाग्य तय करेगा सपना समाप्त,
सन्नाटा
विशाल सुबह उठा वह टूट चुका था उसने खुद को कमरे में बंद कर लिया हर चीज़ बेकार लगने लगी उसके मन में प्रश्न,मैं क्यों जियूँ पर माँ की झलक उसे रोक लेती वह सोचता अगर नहीं जिया तो माँ अकेली हो जाएगी उसने काम ढूँढना शुरू किया पर बदनामी के कारण
कहीं जगह नहीं मिली लोग कहते “धोखेबाज़” विशाल बुझ गया,
पतन की गहराई
उसके पास पैसे नहीं थे भविष्य अंधकार वह सड़कों पर चलता लोगों को हँसते देख अपने घाव और गहरे महसूस करता वह सोचता क्या मेरी जिंदगी सिर्फ दुख के लिए है फिर वही साधु की आवाज़कर्म कर पर परिणाम नियति तय करेगी वह समझ नहीं पा रहा था कर्म करे तो क्यों अगर फल तय है तो संघर्ष क्यों उसने उत्तर तलाशा बिना जवाब केदिन बीतते रहे,
भाग (4) राक्षस-सी चाहत
अमरपुर में समय बीतता गया विशाल अब 18 वर्ष का हो चुका था उसके भीतर धन, शक्ति और प्रतिष्ठा की असीमित चाह धीरे-धीरे जगह बना रही थी वह अब सिर्फ कमाना नहीं चाहता था वह सबसे बड़ा बनना चाहता था ये चाह धीरे-धीरे उसके स्वभाव में एक राक्षस-सी भूख बन चुकी थी,
नई दुनिया की दहलीज़
गिरिधर सेठ की दुकान पर काम करते-करते विशाल ने व्यापार की नींव समझ ली कब माल लेना है,कब बेचना है,क्या चीज़ कीमती है
और क्या बेकार,एक दिन एक बड़ा व्यापारी हरिओम खत्री सामान लेने आया वह अत्यंत प्रभावशाली, धनीऔर चालाक थाउसने विशाल से बातचीत की तो चकित रह गया एक साधारण लड़का इतनी कम उम्र में इतनी समझ हरिओम ने पूछा कभी अपना व्यापार करने का सोचा है विशाल ने धीमे कहा सोचा नहीं तय किया है हरिओम मुस्कुराया सपना बड़ा है पूरी दुनिया उसी की होती है जिसने दुनिया से डरना छोड़ा हो यह बात विशाल के दिल में धँस गई,
पहला प्रलोभन
कुछ ही दिनों बाद हरिओम ने विशाल को बुलाया मैं चाहता हूँ कि तू मेरे साथ काम करे तुझे बड़ा बनाऊँगा इतना बड़ा कि लोग तेरा नाम सुनकर सिर झुकाएँ विशाल चौंका उसकी आँखें चमक उठीं वह बोला,लेकिन मैं गिरिधर सेठ की दुकान पर काम करता हूँ,हरिओम ने हँसकर कहा धन किसी बंधन को नहीं मानता जो आगे बढ़ना चाहता है,उसे रिश्तों का मोह छोड़ना पड़ता है ये वाक्य विशाल के मन में जोर से टकराए आकर्षण उसके भीतर बिजली की तरह दौड़ा,
धोखे की पहली सीढ़ी
विशाल कई रातों तक सो नहीं पाया एक तरफ सेठ गिरिधर थे जिन्होंने उसे काम दिया, सिखाया दूसरी तरफ हरिओम जो उसे धन और शक्ति देने को तैयार था अंततः महत्वाकांक्षा मानवता पर भारी पड़ गई एक रात विशाल ने दुकान के कई व्यापारिक सूत्र, ग्राहकों की सूची, दरें और लाभ-हानि के लेखे कापी में उतारे और हरिओम को दे दिए यही उसकी गलत राह ,की पहली सीढ़ी थी जिस दिन उसने विश्वास तोड़ा,भाग्य की धारा भी बदल गई लेकिन यह बदलाव अच्छाई का न था,
तेज़ उन्नति — लेकिन सच्ची नहीं
हरिओम चालाक था उसने विशाल की जानकारी का लाभ उठाया और बाज़ार में तेज़ पकड़ बना ली,विशाल अब उसका प्रमुख सहायक था थोड़े ही समय में नाम, धन,आराम सब मिलने लगा लोग कहते विशाल में हुनर है किसी को नहीं पता उसकी सफलता सच्चे परिश्रम की नहीं, धोखे की देन थी विशाल भीड़ में मुस्कुराता पर रातों में अदृश्य बोझ उसे बेचैन रखता कभी-कभी साधु देवकीरतनाथ के शब्द
उसके कानों में गूँजते जितना दिया जाएगा, उतना ही छीन भी लिया जाएगा,पर उसकी चाह,अब इतनी बढ़ चुकी थी कि वह सत्य को नज़रअंदाज़ करने लगा था,
राक्षस-सी आँधी बढ़ती गई
कुछ ही वर्षों में विशाल अमरपुर के धनवानों की सूची में शामिल हो गया सोने-चाँदी से सजा घर, महारथी घोड़े,कपड़े,खाना,नौकर सब कुछ था लेकिन उसका मन कभी संतुष्ट न होता वह सोचता अभी और चाहिए और,और उसकी आँखों में धन अब सिर्फ साधन नहीं, ईश्वर बन चुका था रात-दिन धन-चिंतन उसके भीतर एक राक्षसी लपट की तरह जलने लगा,
पुराना मित्र — पुरानी सीख
एक दिन वह बाज़ार में अर्णव से मिला,अर्णव ने कहा,वाह गाँव का गरीब लड़का आज बड़ा आदमी बन गया विशाल मुस्कुराया,भाग्य नहीं मेरी मेहनत अर्णव हँस पड़ा भाग्य को हरा सकता है इंसान विशाल बोला मैंने हरा दिया अर्णव उत्तर दे गया कहानियाँ अभी बाकी हैं ये शब्द,बाण की तरह विशाल के मन में धँस गए पर उसे लगा अर्णव ईर्ष्या से बोल रहा है,
नैतिक पतन
अब धन कमाने के लिए विशाल किसी भी हद तक जाने लगा गलत सौदे झूठ मुनाफ़ाखोरी गरीबों का शोषण उसकी आँखों में कानून, नैतिकता, धर्म कुछ नहीं बचा ,उसके लिए बस लक्ष्य था,
सबसे बड़ा बनना
और यह चाह अब उसे धीरे-धीरेअंधकार में ढकेल रही थी,
प्रकृति की चेतावनी
एक रात तेज़ तूफ़ान आया विशाल के घर के बाहर अचानक साधु देवकीरतनाथ खड़े दिखाई दिए भयभीत विशाल बाहर निकला आप फिर से साधु बोले समय है चेत जाने का विशाल ने हँसकर कहा अब मैं बड़ा आदमी हूँ धन है, शक्ति है अब मुझे कोई नहीं रोक सकता साधु का चेहरा विषाद से भर गया,उन्होंने कहा जब मानव अपनी चाह में प्रकृति को चुनौती देता है तब अंत निश्चय हो जाता हैविशाल चिल्लाया मैं अपने भाग्य को बदलकर दिखाऊँगा साधु ने शांति से कहा भाग्य बदलते नहीं पूरा होते हैं और तूफ़ान की अँधेरी लहरों में धुँध की तरह लुप्त हो गए लेकिन उनके शब्द विशाल की आत्मा पर दाग बनकर बैठ गए,
अंदर बढ़ता अंधकार
अब विशाल अकेला होने से डरता शांति से डरता चुप्पी से घबराता क्योंकि खामोशी में वही आवाज़ें उससे बातें करतीं जो लिखा है वही होगा पर उसका मन अभी भी चीखता मैं सब बदल दूँगा यही उसके पतन के अंतिम चरण की शुरुआत थी,
भाग (5) पहली हार
समय की धारा किसी के लिए नहीं रुकती,अमरपुर में विशाल की प्रसिद्धि बढ़ रही थी,लेकिन उसके भीतर एक ऐसा खालीपन जन्म ले चुका था जिसे धन भी नहीं भर पा रहा था धन की चाह अब नशे में बदल चुकी थी नशा जितना चढ़ता है,उतना ही खतरनाक ढंग से उतरता भी है और अब इसी चाह का पहला परिणाम,विशाल के जीवन के द्वार पर दस्तक देने वाला था,
अचानक आया तूफ़ान
अमरपुर पर कई महीनों से दूर-दूर के व्यापारियों का विश्वास धीरे-धीरे बढ़ रहा था लेकिन इस व्यापार का बड़ा आधार था उत्तर दिशा से आने वाला कीमती सूत-व्यापार, एक दिन खबर आई उत्तर में भयंकर युद्ध छिड़ गया है राजाओं के बीच संघर्ष ने वहाँ का सारा व्यापार रोक दिया,हर व्यापारी परेशान था, पर सबसे अधिक घबराहट हरिओम और विशाल को थी क्योंकि उनका सबसे बड़ा सौदा उसी रास्ते से आने वाला था यदि वह सौदा न पहुँचा तो उनकी कमर टूट सकती थी,
अंध विश्वास — गलत निर्णय
हरिओम बोला युद्ध की खबर झूठ भी हो सकती है भय मत करो सामान आएगा,हर हाल में आएगा लेकिन विशाल को कहीं भीतर एक बेचैनी महसूस हुई मानो प्रकृति उसे चेतावनी दे रही हो,पर उसकी महत्वाकांक्षा ने उसके विवेक को दबा दिया विशाल ने कहा अगर जोखिम न लिया तो कुछ बड़ा नहीं मिलेगा हरिओम हँसा शाबाश यही चाहिए था उन्होंने और अधिक पूँजी लगाकर और माल मँगाने का आदेश भेज दिया,
भाग्य की पहली चोट
दिन बीतते गए कोई सूचना नहीं न सामान की,न लोगों की एक महीने बाद अंततः खबर आई वह कारवाँ युद्ध में लूट लिया गया था सामान जाने की जगह बर्बाद हो चुका था लोग मारे गए विशाल स्तब्ध रह गया हरिओम के चेहरे पर पहली बार भय दिखाई दिया उस सौदे में उनकी सारी कमाई ही नहीं,भारी कर्ज भी लगा थाअब सब डूब चुका था,
बाज़ार का विश्वास टूटना
अमरपुर में तेज हवा की तरह खबर फैली विशाल और हरिओम का बड़ा नुकसान हुआ है लोगों का विश्वास एक-एक करके टूटने लगा,धन वही निवेश करता है जो विश्वास रखता है विश्वास गयातो धन भी चला गया,कई व्यापारी अपना पैसा वापस माँगने लगे कई नौकर छोड़कर चले गए,कल तक विशाल जिसके पास लोग झुककर बात करते थे,आज वही लोग उसे तिरस्कार से देखने लगे,
विश्वासघात का फल
गिरिधर सेठ को जब यह बात पता चली,तो उन्होंने सबके सामने कहा,धोखे और छल से आधार बनता है मकान नहीं धन धोखे से आता है,
तो धोखे से चला भी जाता है विशाल ने सिर झुका लिया उसे ज्ञात था वे बात सही कह रहे हैं पर दिल में एक कड़वी सच्चाई और भी चुभी,
यह उसके कर्मों का ही परिणाम था/हरिओम का पलटना
संकट के समय दोस्ती,संबंध,साझेदारी सबकी असलियत सामने आती है हरिओम डर गया था कानून,समाज, और व्यापारियों के क्रोध सबका भय उसे था इसलिए उसने विशाल पर आरोप मढ़ना शुरू कर दिया इस घाटे का जिम्मेदार मैं नहीं विशाल है वह भीड़ में रोते हुए बोला मैंने इस लड़के को मौका दिया, लेकिन इसी ने गलत सौदे कराए, सूचना गलत दी,लोग विशाल की ओर देखने लगे किसी को सत्य नहीं पता था लेकिन भीड़ सत्य नहीं,शोर सुनती हैऔर आज शोर विशाल के खिलाफ़ था,
पहली गिरावट
विशाल की संपत्ति जब्त होने लगी दुकानें हाथ से गईं हवेली खाली हुई जिस घर में सोने की थालियाँ थीं, आज वहाँ कठोर पत्थर और चूहों की आवाज़ ही बची लोग पीठ फेरकर चले जाते कल तक जो नौकर उसके चरण छूते, आज अपमान करते,विशाल सड़कों पर चुपचाप चलता और सोचता कहाँ गलती हुई,लेकिन सच यह था गलती कहीं नहीं,हर जगह हुई थी,
प्रकृति की चुप चेतावनी
एक रात थका-हारा विशाल नदी किनारे बैठा था अँधेरा शांत था चाँद पानी में झिलमिला रहा था अचानक ठंडी हवा चली और साधु देवकीरतनाथ उसके सामने प्रकट हुए विशाल ने थके स्वर में कहा आप फिर आए क्यों साधु बोले क्योंकि प्रकृति चेतावनी देने से कभी नहीं थकती जब तक मनुष्य समझ न ले,विशाल ने गहरी साँस ली मैंने गलत किया मुझे दंड मिला,साधु बोले दंड नहीं यह सिर्फ पहला संकेत है विशाल चौंका पहला साधु ने कहा जब मनुष्य धन को भगवान मान लेता है तो प्रकृति उससे उसका भगवान छीन लेती है विशाल रोष में बोला मैं फिर उठूँगा फिर बनूँगा साधु मुस्कुराए तू चाहे हज़ार बार उठ, पर भाग्य की रेखा तुझे वहीँ ले जाएगी जहाँ जाना लिखा है इतना कहकर वे शांत होकर अदृश्य हो गए,
अहंकार अब भी जीवित
हालाँकि नुकसान बड़ा था, पर विशाल के भीतर अहंकार अब भी जल रहा था उसने आसमान की ओर देखा और कहा मैं हारूँगा नहीं अगर प्रकृति मेरे खिलाफ़ है तो मैं प्रकृति को भी मात दे दूँगा,उसकी आँखों में डर नहीं,दु:ख नहीं,बल्कि नई आग दिखाई दे रही थी उसे यह समझ नहीं आया कि जिसे वह चुनौती दे रहा था वह प्रकृति नहीं,स्वयं उसका भाग्य था और भाग्य कभी हारता नहीं,
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