ISHWAR #PART1
यह एक महाकथा हैं जो 20 भागों में विभाजित है ,और ये कहानी काल्पनिक हैं
यह कहानी मनुष्य के भाग्य, मृत्यु, और प्रकृति के अद्भुत चक्र पर आधारित है तुम इसे गहरी दार्शनिक, पौराणिक और भावनात्मक शैली में चाहते हो.
RAJA KUMAR PRAJAPATI
11/14/2025
इस ब्लॉग में 1 से 8 तक की कहानी है
भाग (1 )नियति की रेखा
भीमरथ गाँव के किनारे, जहाँ मिट्टी का रंग गहरा था और हवा में सरसों की खुशबू तैरती थी, वहीं पैदा हुआ था अर्जुन। उसका घर कच्चा था, छत से जब बारिश टपकती थी तो माँ आँगन में बिछी चारपाई पर कपड़ा डाल देती थी गरीबी जैसे उसकी नसों में बहती थी, पर उसके दिल में एक आग थी अमीरी पाने की, कुछ बड़ा करने की,दिन भर खेतों में काम, रात को चूल्हे की लौ की रोशनी में सपने देखना यही उसका जीवन था वह अक्सर आसमान की तरफ देखता और सोचता, “कहाँ होंगे वे तारे जो मेरी किस्मत लिखते हैं” उसके पिता कहते, “बेटा, जो लिखा है, वही होगा इस धरती पर कोई इंसान प्रकृति से आगे नहीं जा सकता” पर अर्जुन उन्हें हँसकर कहता, पिताजी, अगर सब कुछ पहले से तय है तो फिर मेहनत का मतलब क्या,वह सोचता था, भगवान ने अगर मनुष्य को दिमाग और हाथ दिए हैं, तो उसे अपनी किस्मत खुद गढ़ने की ताकत भी दी होगी उसी विचार ने उसके मन में एक जिद बो दी एक दिन वह सबको दिखा देगा कि इंसान खुद अपनी तकदीर लिख सकता है एक दिन, गाँव में एक अजीब बूढ़ा साधु आया उसकी आँखें गहरी थीं, जैसे उनमें पूरा युग समाया हो वह चुपचाप चौपाल पर बैठा ग्रामीणों को देख रहा था
अर्जुन उधर से गुज़रा तो साधु ने उसे रोक लिया बेटा, तेरे माथे की रेखाएँ बहुत तेज हैं क्या तू अपनी किस्मत बदलना चाहता है अर्जुन मुस्कुराया, “हाँ बाबा, मैं गरीबी से तंग आ चुका हूँ मैं अमीर बनना चाहता हूँ इतना कि लोग मेरा नाम आदर से लें, साधु ने शांत स्वर में कहा, जो चाहता है, वही होता है पर याद रख, चाह भी उसी का नियम है जिसने तेरा जन्म लिखा, जो तेरे लिए लिखा गया है, वह तुझे किसी भी राह से मिलकर रहेगा चाहे तू पहाड़ चढ़े या समंदर पार करे, अपनी रेखा से परे नहीं जा सकेगा अर्जुन ने संदेह से पूछा, अगर सब लिखा हुआ है तो भगवान ने मुझे सोचने की शक्ति क्यों दी,साधु मुस्कुराया, क्योंकि सोच भी तेरे कर्म का हिस्सा है सोच, कर्म और फल तीनों एक ही सूत्र में बंधे हैं तू जूझेगा, मेहनत करेगा, लड़ेगा, लेकिन अंत वही होगा जो पहले से तय है अर्जुन को यह बात निराश नहीं कर सकी, उसके भीतर की आग और भड़क उठी। उसने निर्णय लिया कि वह इस साधु की बात को झूठा साबित करेगा वर्ष बीतते गए अर्जुन ने मजदूरी से शुरुआत की, फिर धीरे-धीरे गाँव से बाहर जाकर व्यापार सीखा। उसके पास कुछ नहीं था न जमीन, न पहचान लेकिन उसका आत्मविश्वास सोने से भी कड़ा था वह सुबह-सुबह उठता, नाश्ता छोड़कर काम पर लग जाता दिन गुजरते गए,
और किस्मत जैसे उस पर मेहरबान होने लगी,एक छोटे ठेके से उसने व्यापार शुरू किया माल बेचकर जो कमाया, वही अगले सौदे में लगाया लोग कहते,अर्जुन की किस्मत खुल गई,पर अर्जुन कहता, किस्मत नहीं, मेरी मेहनत कुछ ही वर्षों में वह गाँव का नहीं, पूरे क्षेत्र का नामी व्यापारी बन गया लोगों ने उसे “अर्जुन सेठ” कहना शुरू कर दिया। झोपड़ी की जगह हवेली, नदी किनारे खेत और गाँव में सम्मान सब कुछ उसके पास था लेकिन रातों में जब हवेली की छत पर लेटकर सितारों को देखता, तो उसे एक अजीब बेचैनी घेर लेती। उसके मन में एक प्रश्न उठता, क्या मैंने वाकई किस्मत बदली, या सिर्फ वही हुआ जो पहले से लिखा था एक रात उसे वही बूढ़ा साधु फिर से दिखा, मानो समय की धूल में से निकला हो। साधु बोला, अभी भी वही सोचता है न अर्जुन भाग्य को झूठा साबित करना चाहता था? अब देख, जो तेरे पास है, वही तेरी कथा थी अर्जुन ने कहा, पर मैं तो मेहनत से यहाँ तक आया हूँ साधु बोला, सही है पर वो मेहनत भी तेरे लिखे में थी तू वही करता गया जो तुझे करना था अब आगे जो आने वाला है, उसे देखने की तैयारी कर क्योंकि सृष्टि का नियम है जो जन्मता है, वह मिटता भी है, और जब मिटता है, तब ही असली सत्य सामने आता है अर्जुन ने साधु की आँखों में देखा वहाँ शांति थी, सृष्टि का संतुलन था
उसे पहली बार यह एहसास हुआ कि शायद जीवन केवल दौड़ नहीं, एक चक्र है जो आरंभ होकर अंत तक अपनी ही दिशा में घूमता है और वहीं से उसकी कहानी ने नया मोड़ लिया जिसे मनुष्य के हाथ ने नहीं, प्रकृति ने लिखा क्या तुम चाहोगे कि मैं अगला अध्याय (अर्जुन की अमीरी का भ्रम और जीवन की गिरावट वाला हिस्सा) अब आगे लिख दूँ,
भाग (2) अमीरी का भ्रम
अर्जुन अब भीमरथ गाँव का नहीं रहा था अब वह शहर में महलों जैसा बड़ा घर लेकर रहता था उसकी गाड़ियों की झनझनाहट सुनकर लोग कहते, देखो, वही अर्जुन जो कभी नंगे पैर खेतों में चलता था उसके जीवन में अब वैभव, सम्मान और दिखावा सब कुछ था पर जो चीज़ धीरे-धीरे कम हो रही थी, वह थी शांति,हर सुबह वह बड़े आईने के सामने खड़ा होता और खुद से कहता, मैंने सब कुछ अपनी मेहनत से पाया है लेकिन उस आईने में उसे कई बार अपनी आँखों के पीछे थकान झलकती दिखती मानो आत्मा कुछ कहना चाहती हो अर्जुन, तू जीत गया, पर तू सुकून हार गया अब अर्जुन का व्यापार बहुत बड़ा हो चुका था उसके अधीन सैकड़ों कर्मचारी काम करते थे जिन रिश्तेदारों ने कभी उसके संघर्ष पर हँसी उड़ाई थी, वे अब उसकी बातों में हाँ में हाँ मिलाते थे वह सबको उपदेश देता, मेहनत सबसे बड़ी पूजा है, मैं अपनी किस्मत खुद लिखता हूँ पर हर चीज़ के साथ समय धीमे-धीमे बदलाव लाता है एक दिन शहर में आग लगी अर्जुन के गोदामों में से एक पूर्ण रूप से जल गया लाखों का नुकसान हो गया वह परेशान हुआ,
लेकिन संभल गया उसने फिर से उठने की कसम खाई। पर मानो आकाश में लिखी इबारत पूरी होने लगी दूसरे ही महीने एक साझेदार ने उसे धोखा देकर भाग लिया अदालतें लगीं, कर्ज बढ़ा, बैंक ने संपत्तियाँ जब्त करने की धमकी दी अर्जुन अब वही साधारण आदमी बनता जा रहा था जो वह कभी था—फर्क बस इतना था कि इस बार उसके पास अहंकार था, और अहंकार का पतन सबसे गहरा होता है उसकी पत्नी ने एक दिन कहा, अर्जुन, शायद हमें सब छोड़कर गाँव लौट जाना चाहिए। शायद शांति वहीं मिले अर्जुन ने तमतमाकर कहा, मैं हार मानने वाला नहीं हूँ। मैं फिर से सब कुछ हासिल कर लूँगा अपने दम पर,लेकिन भाग्य की चुप कलम तब भी चल रही थी कुछ ही महीनों में उसके बाकी व्यापार भी घाटे में गए उसकी गाड़ियाँ बिक गईं, मकान गिरवी हो गया अब वही लोग उससे मुँह फेरने लगे जो कभी उसकी जय-जयकार करते थे अरसे बाद अर्जुन को एहसास हुआ कि जब तक किस्मत साथ थी, सभी साथ थे जब भाग्य पलटा, कोई नहीं बचा एक रात वह शराब के नशे में गलियों में भटकता रहा बारिश हो रही थी, और उसी सड़क पर उसे वही बूढ़ा साधु फिर से दिखा साधु बोला, कहा था न बेटा, जो लिखा है वही होगा तूने अपनी लकीरों से लड़ने की कोशिश की, लेकिन क्या पाया अर्जुन की आँखों से आँसू गिरने लगे मैंने सोचा था मैं सब बदल दूँगा साधु शांत स्वर में बोला, तू कोशिश कर सकता है यही तेरी भूमिका थी लेकिन परिणाम सृष्टि तय करती है हर पत्ता जब गिरने का समय आता है,
गिरता ही है चाहे तू उसे बाँधने की कितनी भी कोशिश कर ले,अर्जुन वहीं सड़क के किनारे बैठा, आसमान की ओर देखता हुआ रो पड़ा उसे लगा जैसे ऊपर कोई है जो मुस्कुरा रहा है वही ब्रह्मा, जिसने उसकी कहानी पहले ही लिख रखी थी अगले कुछ वर्षों तक अर्जुन का जीवन धीमी आँच पर जलता रहा, वह गाँव लौटा, खेत बेच दिए गए घर जर्जर हो गया लेकिन अब उसके भीतर एक अलग शांति थी एक स्वीकृति कि जीवन सिर्फ पाने का नाम नहीं, समझने का नाम भी है और एक दिन जब सूरज क्षितिज के पार जा रहा था, अर्जुन ने आँखें मूँद लीं उसके अंतिम क्षणों में वही बूढ़ा साधु उसके पास खड़ा था अब चल, समय हो चला है साधु बोला अर्जुन मुस्कुराया, अब डर नहीं लगता बाबा अब समझ आया कि मृत्यु अंत नहीं, नियति का अगला कदम है और उसकी साँस रुक गई। हवा में एक हल्की ठंडक फैली, जैसे प्रकृति ने एक आत्मा को अपने आगोश में ले लिया हो,
भाग (3) आत्मा का सफर
अर्जुन का शरीर शांत पड़ा था घरवालों ने उसे आँसुओं में विदा किया, लोग बोले एक मेहनती आदमी था, किस्मत ने उसका साथ न दिया
पर उसी क्षण, जब सबके आँसू गिर रहे थे, अर्जुन की आत्मा हवा के साथ ऊपर उठ रही थी उसने खुद को देखा लाश, चिता, और वह सब लोग जो कभी उसके साथ हँसते थे उसके कानों में एक धीमी आवाज़ गूँजी, जैसे कोई दूर से पुकार रहा हो, चल अर्जुन, अब तेरे कर्मों का लेखा बाकी है वह मुड़कर देखने लगा चारों ओर उजाला था, न सूरज न तारे, सिर्फ एक चमकता हुआ मार्ग। धीरे-धीरे वह मार्ग उसे एक अलग लोक की तरफ ले गया वह जगह न धरती जैसी थी, न आकाश जैसी सबकुछ पारदर्शी, शुद्ध, और परलोकिक वहाँ समय जैसे ठहर गया था अचानक उसके सामने दो देवदूत प्रकट हुए,एक के हाथ में शंख, दूसरे के पास एक दिव्य पुस्तक,पहले ने कहा, अर्जुन, अब तुझे न्यायलोक में ले चलना है, जहाँ तेरे जीवन का लेखा चित्रगुप्त जी के सामने खोला जाएगा अर्जुन ने चारों ओर देखा उसकी आत्मा हल्की थी, पर मन में असंख्य प्रश्न थे उसने देवदूत से पूछा, क्या अब मेरी सज़ा होगी देवदूत मुस्कुराया, सज़ा और इनाम इंसान समझता है यहाँ तो सिर्फ परिणाम होता है। जैसा बोया वैसा पाया यात्रा लंबी थी, लेकिन थकान नहीं थी रास्ते में उसने हजारों आत्माओं को जाते हुए देखा कोई डर में काँप रहा था, कोई मुस्कुरा रहा था कुछ आत्माएँ बीच में भटक रही थीं, मानो अपने अधूरे कर्मों के कारण आगे न जा पा रही हों
अर्जुन ने पूछा ये कौन लोग हैं देवदूत बोला, जिन्होंने कर्म अधूरे छोड़े माँ-बाप की आत्मा रोती रह गई, वचन पूरे नहीं हुए, मोह छोड़ न पाए जब तक उनका एहसास पूरा नहीं होता, वो आकाश में यूँ ही अटकते हैं अर्जुन ने सोचा मैंने कितने वादे अधूरे छोड़े अपने पिता की बात भी नहीं मानी थी कि मनुष्य प्रकृति से बड़ा नहीं हो सकता, उसके भीतर पछतावे की एक लहर उठी, आखिरकार वे सभी एक विशाल द्वार के सामने पहुँचे उस पर लिखा था यमलोक द्वार के पार एक नीलवर्ण आकृति खड़ी थी, हाथ में गदा, आँखों में न कोई क्रोध न करुणा वह थे स्वयं यमराज उनके पास सिंहासन के दाहिने ओर एक विशाल पुस्तक थी, और उसे खोलकर चित्रगुप्त लिख रहे थे। उनके हाथ में कलम थी जो चमकती हुई किरणों से बनी लगती थी अर्जुन ने घुटनों के बल नमन किया। यमराज बोले, अर्जुन, तेरे जीवन का लेखा तैयार है जो तू समझ न पाया, आज वही समझने का समय है चित्रगुप्त बोले, अर्जुन पुत्र रामकिशोर जन्म, भीमरथ गाँव, कर्म, व्यापारी, स्वभाव, जिजीविषु जिसने भगवान की व्यवस्था पर प्रश्न उठाया, पर अंत में सत्य को स्वीकार किया फिर उन्होंने कहा, तेरे कर्मों में लोभ और पुरुषार्थ दोनों हैं तूने दान भी दिया, पर घमंड भी किया तूने दूसरों की सहायता भी की पर अपमान भी किया अर्जुन चुप रहा। उसके भीतर एक अजीब हल्कापन था जैसे अब सब समझ आने लगा हो चित्रगुप्त ने पूछा, क्या तुझे कोई पछतावा है अर्जुन बोला, हाँ, मुझे यह समझने में पूरा जीवन चला गया कि मैं कोई रचयिता नहीं,
सिर्फ एक पात्र था उस कहानी का जिसे ऊपर लिखा गया था यमराज ने शांति से कहा, जो यह समझ जाए कि सब कुछ ईश्वर का विधान है, वही मोक्ष के करीब पहुँचता है पर याद रख, तू अभी पूर्ण नहीं हुआ है तुझे अपने अधूरे कर्मों की पूर्ति करने के लिए फिर लौटना होगा अर्जुन ने विस्मित होकर पूछा, मतलब मुझे फिर जन्म लेना होगा चित्रगुप्त बोले, हाँ, पर इस बार तू गर्व नहीं करेगा तू सीखेगा कि हर सांस प्रकृति का उपहार है, और कोई भी मनुष्य उसके आगे नहीं अर्जुन की आत्मा में एक शांति उतर आई उसे लगा जैसे किसी ने उसके कंधों से सदीयों का बोझ उतार दिया हो और उसी क्षण उसके चारों ओर उजाला फैल गया एक नई यात्रा आरंभ होने वाली थी, इस बार अनुभव के साथ,
भाग (4) पुनर्जन्म की पुकार
यमलोक की उस उजली धरती पर जब अर्जुन की आत्मा शांति में थी, तभी चित्रगुप्त ने एक सुनहरी पंखुड़ी पर कुछ लिखा अधूरे कर्म पूर्ण हों
यह वाक्य लिखते ही अर्जुन के चारों ओर प्रकाश लहराने लगा यमराज ने कहा, अब समय है तेरा लौटने का तू जिएगा, पर इस बार सीखने के लिए, ना जीतने के लिए,अर्जुन ने झुककर प्रणाम किया उसे लगा जैसे किसी अदृश्य शक्ति ने उसे छुआ, और वह बेहोशी में डूब गया
धीरे-धीरे सब कुछ धुँधला हो गया यमलोक की प्रकाशमय दुनिया, चित्रगुप्त की कलम, यमराज का शांत चेहरा सब ओझल और फिर आरंभ हुआ नया जीवन पृथ्वी पर एक छोटे से गाँव देवगंज में एक स्त्री ने बच्चे को जन्म दिया माँ ने जैसे ही उसे गोद में लिया, बच्चे की आँखें खोलीं उसके मुख पर शांति थी, पर आँखों में एक अजीब गहराई जैसे उन्होंने पहले भी यह संसार देखा हो उस स्त्री ने कहा, इसका नाम रखेंगे आर्यन समय बीता आर्यन एक समझदार बच्चा निकला। वह बाकी बच्चों से अलग था जहाँ दूसरे बच्चे खिलौनों में खुश रहते, वहाँ आर्यन अक्सर आसमान देखता और कहता, “माँ, लोग क्यों मरते हैं जब सब कुछ खत्म हो ही जाता है, तो हम मेहनत क्यों करते हैं उसकी माँ इन सवालों पर हैरान होती बेटा, तुझे ऐसे प्रश्न कहाँ से आते हैं आर्यन को सपनों में अजीब दृश्य दिखाई देने लगे कभी वह खुद को किसी अमीर आदमी की तरह देखता, कभी किसी बूढ़े साधु के सामने खड़ा रहता जो कहता, मनुष्य प्रकृति से आगे नहीं जा सकता,वह कई रातों को घबराकर उठता ये आदमी कौन है ये चेहरा मैं क्यों बार-बार देखता हूँ धीरे-धीरे गाँव में एक वृद्ध आए, जिनके माथे पर सफेद तिलक और हाथ में कमंडल था वह ध्यानमग्न व्यक्ति थे, और लोग उन्हें ‘महात्मा साधक’ कहते थे आर्यन उनसे मिलने गया वृद्ध ने उसकी आँखों में झाँका और मुस्करा उठे,तू लौट आया बहुत कुछ सीखने के लिए,आर्यन चौककर बोला, आप मुझे जानते हैं महात्मा ने कहा, आत्मा को पहचानने में कठिनाई नहीं होती पिछले जन्म की स्मृति मिटती है, पर आत्मा की छाप नहीं मिटती। तू वही अर्जुन है जिसने अपनी लकीरें बदलने की ठानी थी आर्यन चुप हो गया उसे लगा जैसे उसकी आत्मा कांप उठी हो मन में चित्र उभरने लगे आग, हवेली, और बूढ़ा साधु
वह घुटने पर बैठकर बोला, क्या सब सच है क्या मैं सचमुच लौट आया हूँ महात्मा बोले, “हाँ, क्योंकि तूने जीवन का सत्य जाना पर उसे पूर्ण रूप में स्वीकार नहीं किया इस बार तेरी भूमिका अलग है अब तू दूसरों को वो सिखाएगा जो तूने झेला वर्ष बीतते गए आर्यन बड़ा हुआ और शिक्षा प्राप्त कर गाँव का अध्यापक बन गया वह बच्चों को सिर्फ किताबें नहीं, जीवन का अर्थ भी सिखाता मेहनत करो, पर परिणाम का गर्व मत करो। जो होना है, वह होगा, पर कर्म ही तुम्हें ईश्वर के करीब लाता है लोग कहते, यह लड़का कुछ और ही है, इसके शब्दों में अनुभव झलकता है एक दिन वही महात्मा उससे मिलने आए। उन्होंने कहा, “याद रख बेटा, हर जन्म एक अवसर है यह तेरा पुनर्जन्म तेरी आत्मा की यात्रा का दूसरा पड़ाव है आर्यन ने सिर झुकाया, मैं तैयार हूँ, गुरुजी इस बार मैं भाग्य से नहीं लडूंगा, बल्कि उसे समझूँगा,और उसी क्षण आकाश में बादलों के बीच से एक हल्की रौशनी उतरी मानो ब्रह्मा ने मुस्कुराकर कहा हो, अब आत्मा अपने मार्ग पर है,
भाग (5) कर्म ज्ञान की राह
आर्यन अब गाँव का सम्मानित अध्यापक बन चुका था उसकी वाणी में अद्भुत शांति थी बच्चे जब उससे पूछते गुरुजी, क्या मेहनत करने से किस्मत बदल जाती है तो वह मुस्कुराकर जवाब देता, किस्मत नहीं बदलती, इंसान खुद बदलता है और जब इंसान खुद बदलता है, तो उसके सामने किस्मत भी झुक जाती है गाँव के लोग उसे एक साधु समान मानने लगे वह क्रोध नहीं करता था, किसी से घृणा नहीं रखता था जो उसे बुरा कहता, उसे भी आशीर्वाद देता,कई बार वह खेतों में जाकर मिट्टी को अपने हाथों से छूता, जैसे किसी पुराने मित्र से बात कर रहा हो,वह कहता, यही मिट्टी है जो हमें बनाती है और इसी में हमें लौटना है जो इसे समझ गया,
उसने जीवन समझ लिया एक दिन गाँव में एक व्यापारी आया, जिसने अपने धन के बल पर गरीबों की जमीन छीनी लोग डर के मारे चुप थे आर्यन के भीतर पुराने जन्म की यादें हलचल करने लगीं उसे अर्जुन का घमंड याद आया, जिसने कभी अपने धन पर गर्व किया था उसने उस व्यापारी के पास जाकर कहा, धन सिर्फ साधन है, स्वामी नहीं तू जो ले रहा है, वह तेरा नहीं, प्रकृति का है एक दिन यही धन तेरी शांति निगल जाएगा व्यापारी हँसा, तेरे जैसे आदर्शवादी हमेशा गरीब रहते हैं आर्यन मुस्कुराया, गरीब वही है जो संतोष से दूर है धीरे-धीरे गाँव के लोग आर्यन के शब्दों से प्रेरित होने लगे वह गरीबों को शिक्षा देने लगा, बच्चों में समर्पण का भाव जगाने लगा,गाँव बदलने लगा लोग कर्म को पूजा मानने लगे। कई लोग कहते, पहले यहाँ झगड़े थे, अब शांति है लेकिन भाग्य का नियम है परीक्षा के बिना पूर्णता नहीं एक रात गाँव में भयंकर तूफान आया, नदियाँ उफान पर थीं कई घर ढह गए आर्यन बिना एक क्षण गंवाए बच्चों और बुजुर्गों को सुरक्षित स्थान पर ले गया वह खुद खेतों में जाकर लोगों को बचाता रहा,पर जब सबको सुरक्षित कर चुका, तभी बिजली कड़कने की तेज आवाज़ हुई और आर्यन को चोट लगी। वह ज़मीन पर गिर पड़ा, उसकी साँसें धीमी होने लगीं लोग उसे गले लगाकर रोने लगे, गुरुजी,
हमें छोड़कर मत जाइए आर्यन की आँखों में शांति थी उसने कहा, मैं कहीं नहीं जा रहा, आत्मा कभी मरती नहीं। याद रखना प्रकृति सबकी माँ है, उससे आगे कोई नहीं जा सकता आसमान में एक हल्की रौशनी फैली उसके चेहरे पर मुस्कान थी, जो मृत्यु नहीं बल्कि मुक्ति जैसी लग रही थी लोगों ने कहा, गुरुजी ने हमें जीवन का सबसे बड़ा सत्य सिखाया, जो धरती से जुड़ा है, वही सच्चा है गाँव ने उसके नाम पर एक स्कूल बनवाया, जहाँ हर दीवार पर लिखा गया
कर्म करो, परिणाम की चिंता मत करो क्योंकि जो लिखा है वही होगा, और जो किया है वही मिलेगा उस दिन के बाद, देवगंज की हवा में एक शांति घुल गई, जो मानो कह रही थी मनुष्य चाहे जो कर ले, प्रकृति की रेखा वही आखिरी सच्चाई है,
भाग (6) अंतिम संवाद
जब पृथ्वी पर आर्यन का शरीर शांत पड़ा था, तभी उसकी आत्मा धीरे-धीरे ऊपर उठ रही थी। इस बार उसे कोई भय नहीं था, कोई भ्रम नहीं हवा में एक दिव्य सुगंध थी, और हर दिशा उजाले से भरी हुई उसके सामने एक स्वर्णिम मार्ग खुला है वही मार्ग, जो आत्मा को सत्य के लोक तक ले जाता है जैसे-जैसे वह आगे बढ़ा, उसे लगा मानो उसकी सारी स्मृतियाँ, सारे जन्म, सारे अनुभव अब एक-एक कर खुलते जा रहे हों कुछ दूरी पर उसे वही व्यक्ति दिखे यमराज, चित्रगुप्त और अब दो और तेजस्वी आकृतियाँ एक के चार मुख और दूसरे के चार हाथ,अर्जुन की आत्मा ने उन्हें प्रणाम किया वे थे स्वयं ब्रह्मा और विष्णु ब्रह्मा ने शांति से कहा, आ गया तू फिर से, उस सत्य को जानने जो हर बार तुझसे दूर रह गया था आर्यन ने सिर झुका लिया, इस बार मैंने जीवन को समझने की कोशिश की थी, पर अब समझ आया कि जीवन तो बस एक अवसर है चित्रगुप्त ने अपनी पुस्तक का एक पृष्ठ पलटा उसमें लिखा था, जिसने जीवन को पाने में नहीं, देने में अर्थ खोजा,
वही सच्चे कर्म का अधिकारी होता है यमराज बोले, हर जन्म तेरी आत्मा को थोड़ा और साफ करता गया तूने समझ लिया कि मनुष्य का अहंकार ही उसकी सबसे बड़ी परीक्षा है आर्यन ने विष्णु की ओर देखा और पूछा, “हे भगवान, अगर सब पहले से लिखा है, तो फिर कर्म क्यों, विष्णु मुस्कुराए, कर्म ही तेरी आत्मा का मार्ग है भाग्य तुझे स्थिति देता है, पर कर्म तुझे प्रतिक्रिया सिखाता है सृष्टि का नियम सरल है जो बोता है, वही पाता है, लेकिन बीज बोना तेरे हाथ में है फिर ब्रह्मा बोले, जब मैंने तुझे जन्म दिया, तब तेरे साथ तेरी लकीरें बनाईं वे लकीरें ईश्वर के नियम से बनीं,पर उन लकीरों के भीतर तुझे कर्म की स्वतंत्रता दी तू उसे कैसे जीता है, वही तेरा मोक्ष या बंधन तय करता है आर्यन शांत स्वर में बोला, तो वास्तव में स्वतंत्रता और नियति, दोनों साथ चलती हैं ब्रह्मा ने कहा, हाँ जैसे नदी बहती है, उसका स्रोत और अंत तय है, पर पानी कितने मोड़ों से गुजरेगा, वह तुझ पर निर्भर है आसमान में दिव्यता गहराने लगी आर्यन को लगा जैसे उसके भीतर से सारा बोझ हट गया हो,चित्रगुप्त ने पुस्तक बंद की और बोले, तेरा लेखा अब पूर्ण हुआ तूने मनुष्य रूप में जो सीखनी थी, सीख ली,विष्णु बोले, अब तू लौटेगा नहीं अब तू उस लोक में प्रवेश करेगा जहाँ से सबकी यात्रा शुरू होती है आर्यन ने पूछा, क्या वही मोक्ष है ब्रह्मा ने उत्तर दिया, हाँ, जब तू यह समझ ले कि तू ब्रह्म का अंश है, तब तेरा अंत नहीं, तेरा विस्तार होता है क्षणभर में उसके चारों ओर प्रकाश फैल गया आवाजें जैसे मधुर ध्वनियों में बदल गईं उसने आखिरी बार पृथ्वी की दिशा में देखा वहाँ बच्चे उसी स्कूल में पढ़ रहे थे जहाँ दीवार पर लिखा था प्रकृति से आगे कोई नहीं जा सकता, क्योंकि वही सबकी माँ है आर्यन की आत्मा उस उजाले में धीरे-धीरे विलीन हो गई और उसी क्षण, एक नया सवेरा पृथ्वी पर हुआ शायद किसी और आत्मा की नई यात्रा शुरू हो चुकी थी,
भाग (7) ब्रह्मलोक की अनुभूति
आर्यन की आत्मा अब पूर्ण प्रकाश बन चुकी थी वह किसी शरीर में नहीं थी, किसी सीमा में नहीं थी चारों ओर बस अनंत उजाला था न दिन था, न रात, बस एक शांति जो समय से भी परे लगती थी उसके भीतर से प्रकाश बाहर निकल रहा था, और बाहर का प्रकाश उसके भीतर समा रहा था जैसे अब मैं और वह का कोई भेद न रहा हो, धीरे-धीरे उसके सामने एक दिव्य आलोक प्रकट हुआ, ब्रह्मा, विष्णु और महेश का संयुक्त स्वरूप वह आवाज़ जैसे अंतरिक्ष से गूँज उठी,अर्जुन नहीं न आर्यन, अब तू आत्मस्वरूप है अब जान ले कि सब कुछ एक ही स्रोत से प्रवाहित है आर्यन की आत्मा विस्मित थी उसने कहा, “हे प्रभु, मुझे लगता था कि इंसान अलग है, प्रकृति अलग, और आप सबसे ऊपर। पर अब सब एक जैसा लगता है उत्तर मिला, वह तेरा भ्रम था जब तूने स्वयं को संसार से अलग समझा, तभी दुख शुरू हुआ जो यह जान ले कि हवा, मिट्टी, जल, अग्नि और जीवन सब एक ही तत्व से बने हैं, वही मुक्त होता है फिर उसने देखा असंख्य आकाशीय तरंगें चारों ओर घूम रही थीं हर तरंग मानो एक आत्मा थी कोई मुस्कुरा रही थी,
कोई खोज में थी, कोई नयी यात्रा पर जा रही थी वह आवाज़ फिर बोली, यह संसार किसी का नहीं, सबका है ईश्वर न बाहर है, न ऊपर वह हर जीव में, हर कर्म में, हर सांस में है आर्यन ने पूछा, तो क्या कोई अंत नहीं उत्तर आया, नहीं, अंत नहीं, केवल परिवर्तन है जैसे नदी सागर में मिलकर भी बनी रहती है, वैसे ही आत्मा अस्तित्व में बनी रहती है उस क्षण आर्यन के भीतर असीम आनंद व्याप्त हो गया उसे लगा जैसे वह स्वयं ब्रह्म के हृदय में समा गया हो कोई प्रश्न शेष नहीं रहा, कोई भय नहीं, कोई इच्छा नहीं सिर्फ तृप्ति एक गहरी, निर्मल तृप्ति, कुछ समय (या शायद शाश्वत क्षण) बाद उसने नीचे देखा, विश्व घूम रहा था मनुष्य अपनी नियति जी रहा था कोई जन्म ले रहा था कोई मृत्यु का अनुभव कर रहा था वह मुस्कुरा उठा, अब समझ आया सब कुछ निरंतर चल रही लीला है धीरे-धीरे उसकी चेतना एक शांत ज्योति में रूपांतरित हो गई अब वह किसी रूप में नहीं, बल्कि सदैव प्रवाहित ऊर्जा के रूप में समा गया था वह न अर्जुन था, न आर्यन वह अब ब्रह्मांश था और उसी क्षण ब्रह्मलोक में एक नई आभा चमकी दूर कहीं किसी नई आत्मा के जन्म की घड़ी शुरू हो चुकी थी जो शायद किसी और कहानी की रेखा बनने वाली थी,
भाग (8)नई शुरुआत
ब्रह्मलोक के उस प्रकाश में जहाँ सब कुछ एक था, वहाँ एक हल्की तरंग उठी वह तरंग किसी एक आत्मा की थी वही आत्मा जो कभी अर्जुन थी, फिर आर्यन बनी, और अब ब्रह्म के अंश में विलीन थी ब्रह्म की वाणी गूँजी, समय पूर्ण हुआ, अब नयी सृष्टि को तेरी आवश्यकता है ब्रह्म की लीला तभी चलती है जब आत्माएँ फिर लौटें क्षणभर में वही आत्मा पुनः प्रवाहित हुई, हौले-हौले प्रकाश की धार बनकर समय के दरवाज़े से गुज़री नीचे पृथ्वी का आकाश चमक रहा था, एक नया युग आने वाला था विज्ञान और भौतिकता से भरा युग अब समय था इक्कीसवीं सदी का एक आधुनिक शहर के अस्पताल में, जब सुबह ने जन्म लिया, वहाँ एक शिशु ने आँखें खोलीं डॉक्टर ने कहा, माँ, बधाई हो, बेटा हुआ है माँ मुस्कुराई, और बच्चे की आँखों में झाँककर ठिठक गई उन छोटी-सी आँखों में एक गहराई थी, जैसे उनमें पूरी सृष्टि का अनुभव छिपा हो, वह बच्चा बड़ा हुआ उसका नाम आरव रखा गया आरव बुद्धिमान, शांत और कुछ अलग स्वभाव का था जबकि बाकी बच्चे खिलौनों से खेलते, वह आसमान देखकर कहता, क्या बादल भी वहीं जाते हैं जहाँ आत्माएँ जाती हैं उसके माता-पिता को यह बातें अजीब लगतीं एक दिन आरव ने पूछा, “माँ, क्या किसी का जीवन पहले से तय होता है माँ ने हँसते हुए कहा,
नहीं बेटा, सब कुछ मेहनत से मिलता है आरव मुस्कुरा उठा ,लेकिन अगर मेहनत करना भी लिखा हो तो उसके शब्द सुनकर उसकी माँ चौंक गई जैसे किसी पुराने युग की गूँज फिर लौट आई हो,समय बीतता गया आरव बड़ा हुआ, और विज्ञान की ओर उसका झुकाव बढ़ने लगा, पर उसके भीतर हमेशा एक प्रश्न जलता रहा ,जीवन की रचना कौन करता है क्या सिर्फ विज्ञान, या कुछ और भी वह ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति पर शोध करने लगा हर दिन उसे कुछ नया अनुभव होता, कभी ध्यान में बैठते हुए उसे पुराने दृश्य दिखते एक बूढ़ा साधु, आग की लपटें, और एक गाँव का स्कूल, वह सोचता, ये दृश्य मेरे सपनों में क्यों आते हैं एक रात, जब वह तारों का अध्ययन कर रहा था उसके माथे पर हल्की रौशनी चमकी,
कमरे का तापमान घटने लगा, वातावरण शांत हो गया, और उसके भीतर एक आवाज गूँजी तेरी यात्रा अभी खत्म नहीं, पर तू अब समझ चुका है कि कोई भी ज्ञान, कोई भी आविष्कार, प्रकृति के नियम से परे नहीं जा सकता आरव की आँखों से आँसू बह निकले उसने आसमान की ओर देखा और कहा, अब समझ आया अनुमान, विज्ञान, श्रम सब ईश्वर की ही लीला हैं जो लिखा गया है, वही होगा, पर उसे समझना ही सच्चा कर्म है वह शोध जारी रखता रहा, लेकिन अब उसके लिए विज्ञान पूजा था और प्रकृति देवता,उसने अपने काम से मानव जीवन में नई खोजें दीं ऐसी तकनीक, जो प्रकृति को नुकसान पहुँचाए बिना मनुष्य की सहायता करती थी लोग उसे मानवता का वैज्ञानिक संत कहने लगे जीवन के अंत में जब वह वृद्ध हुआ, किसी ने उससे पूछा,गुरुजी, क्या आप ईश्वर को मानते हैंवह मुस्कुराया और बोला, ईश्वर को जानने की कोशिश मत करो, उसे महसूस करो हर सांस में, हर नियम में, हर जीवन में उसकी आँखें धीरे-धीरे बंद हुईं उसके आसपास हवा स्थिर हो गई, कमरे में एक अद्भुत चमक छा गई जैसे कोई आत्मा फिर सृष्टि में लौटने की तैयारी कर रही हो,और ब्रह्म की आवाज़ फिर गूँजी लीला अचल है। आत्मा अमर है जन्म और मृत्यु बस घड़ियों के पहिए हैं
SLIONRAJA STUDIO
© 2025. All rights SLIONRAJA STUDIO reserved.
CONTACT US ALL QUERIES