SUMUDR KA GEET
THE MACHUARA STORIES IS IMAGINARY
MACHUARA STORIES
10/20/2025
कहानी- समुद्र का गीत
सुदूर गाँव के किनारे, जहाँ लहरें धरती को चूमती हैं, वहीं एक बूढ़ी झोपड़ी थी टूटी छत, छेदों से भरा दरवाज़ा, और खपरैल की दीवारों से टपकता नमक उसी झोपड़ी में रहता था रामू मछुआरा, अपनी बुढ़ी माँ के साथ झोपड़ी के बाहर एक टूटी बाल्टी, पुराना जाल, और टेढ़ा डोंगा (नाव) पड़ा था यही उसकी दुनिया थी,हर सुबह जब सूरज समुद्र से निकलता, रामू अपनी नाव लेकर निकल पड़ता उसकी माँ उसके पीछे से आवाज़ लगाती ध्यान रखना रामू, लहरों से लड़ाई मत करना उनसे ममत्व से बात करना माँ की आँखों में उम्मीद तो थी, पर भय भी कि कहीं समुद्र आज उसका बेटा वापस न निगल जाए रामू नाव चलाते हुए धीरे‑धीरे सागर की गहराई तक पहुँचता सूरज की किरणें पानी पर नाचतीं, जैसे समुद्र खुद कोई गीत गा रहा हो जो मुझे समझेगा, मैं उसे धन्य करूंगा
रामू मुस्कुराकर कहता समुद्र बाबा, आज थोड़ा दया कर दो, माँ की दवा के पैसे पूरे नहीं हैं लहरें जैसे हल्की थपकी देतीं, और वह जाल फेंक देता पर दिनों‑दिन मछलियाँ कम होती जा रही थीं एक दिन उसका पुराना दोस्त सुके आया वही जो पास के गाँव का मछुआरा था उसके चेहरे पर शहर जाने का चमक था अरे रामू, उसने कहा तू भी चल मेरे साथ शहर, वहाँ मशीनें हैं जाल फेंकने की झंझट नहीं। पैसा भी खूब है रामू ने गहरी साँस ली, सुके, शहर की चकाचौंध मेरी माँ की आँखों में नहीं बस सकती यहाँ मिट्टी है, समंदर है, और मेरी माँ की दुआ सुके ने ठंडी हँसी हँसते हुए कहा, “दुआ से पेट नहीं भरता रे! अब समंदर बूढ़ा हो गया है रामू शांत रहा उसने समंदर की ओर देखकर पूछा, “क्या सचमुच तू बूढ़ा हो गया है बाबा एक ऊँची लहर उठी जैसे उत्तर में गुस्से का स्वर हो नाव हिली, पर पलटी नहीं रामू ने मन ही मन समझ लिया कि समुद्र अब भी जवान है, बस इंसान की नीयत कमजोर हो गई है शाम तक जाल में कुछ ही छोटी‑छोटी मछलियाँ फँसीं वह उन्हें धीरे से टोकरी में रखते हुए बोला माँ को तो खुश कर दूँगा घर लौटा तो माँ दीपक जलाए इंतज़ार कर रही थी उसके चेहरे की झुर्रियों में अपनापन था, और आँखों में अनकही कविता आ गया बेटा हाँ माँ, बस दो वक्त की रोटी के लिए मछलियाँ आई हैं माँ ने उसकी थकान देखी, फिर बोली, “बेटा, सुना है समंदर आज बहुत बेचैन था हाँ माँ, पर मैं आज उससे बात करके आया हूँ उसने कहा है, जैसे माँ अपने बच्चों के लिए गोद खोलती है, वैसे ही वह भी हम सबका खयाल रखेगा रात देर तक दोनों बैठे रहे माँ ने बताया कि जब उसके पिता जवान थे, तो इसी समंदर ने उन्हें हमेशा सहारा दिया था लेकिन
एक दिन जब तूफान उठा, वह लौटे नहीं फिर तू मेरे आँचल में पैदा हुआ वह धीरे से बोली शायद तेरे भीतर तेरे पिता की हिम्मत है रामू की आँखें भर आईं अगली सुबह फिर वही दिनचर्या पर इस बार उसने देखा, किनारे पर एक घायल मछली रेत पर तड़प रही थी उसने उसे उठाया, पानी में छोड़ा और कहा तेरी साँसों में भी मेरी तरह उम्मीद है उस दिन अजब बात हुई जाल में मछलियाँ पहले से कहीं ज़्यादा भरीं जैसे समुद्र ने अपनी ममता उँडेल दी हो रामू घर लौटा, माँ के लिए मिठाई लाया झोपड़ी में अब भी गरीबी थी पर हवा में एक अलग खुशबू थी आत्मसम्मान की, मेहनत की और विश्वास की रात को माँ ने कहा बेटा अब तू समंदर को जीत नहीं रहा, तू उससे बात कर रहा है यही असली संपत्ति है रामू मुस्कुराया हाँ माँ, समंदर से कोई लड़ता नहीं, उससे बस बात करनी होती है उस दिन से गाँव वालों ने देखा, रामू के छोटे से जाल में हमेशा उम्मीदें फँसती थीं वह सबको सिखाता समंदर भी माँ जैसा है, जब तक तुम उससे ममता से बात करोगे, वह कभी तुम्हें खाली नहीं लौटाएगा और उसकी झोपड़ी, जो पहले टूटी‑फूटी थी अब आँगन में दीप जलने लगा था माँ की खाँसी अब भी थी, मगर चेहरे पर शांति थी समंदर की लहरें जब भी आतीं, लगता जैसे वे किसी पुराने गीत की ताल पर कह रही हों “रामू, तू मेरा बेटा है,
कहानी का दूसरा भाग- समंदर के साथ सहजीवन
रामू की मछली पकड़ने की जिंदगी वैसे तो कठिन थी, पर उसने अपने दिल में समंदर और माँ के प्यार को हमेशा बचाए रखा था एक दिन, जब मौसम बिलकुल बदल चुका था और समंदर के तेज़ तूफ़ान की खबरें आ रही थीं रामू ने भी महसूस किया कि यह साल उसके लिए बड़ा संकट लेकर आने वाला है उसकी बूढ़ी माँ ने उसे ध्यान से देखा और कहा “बेटा, तू अपनी नाव सम्हाल, समंदर गुस्सा कर रहा है। लेकिन याद रखना, जब तूफान आए, तो अपनी हिम्मत और धैर्य मत छोड़ना बिना आशा के तो कोई मछुआरा पानी में क्यूँ उतरता तूफान के दिन आते ही, समंदर ने अपना भयंकर रूप दिखाया। तेज़ हवा
उछलती लहरें, और आसमान का गड़गड़ाना, सब कुछ भयावह था। रामू ने अपनी बूढ़ी नाव पकड़ ली और अंदर जाकर अपने पुराने जाल को ठीक किया उस वक्त गाँव के सब मछुआरे घर के अंदर छिपे थे, लेकिन रामू का दिल भी घर की तरह था ज्यों ही तूफान थमा, वह फिर से समंदर की बाहों में समर्पित हो गया तब उसकी मुलाकात हुयी एक पुराने जानकार सुके से, जो शहर से लौट आया था, और उस पर शहर की चमक-दमक छोड़ चुका था सुके ने रामू से कहा, देखो यार, तू अपनी छोटी नाव में बैठा रह, जबकि मैं शहर की बड़ी नौका में मछलियाँ पकड़ता हूँ, और मुनाफ़ा करता हूँ। ज़मीन खरीदता हूँ, यहाँ वहाँ लगाता हूँ रामू ने मुस्कुरा कर जवाब दिया मेरे लिए समंदर और मेरी माँ की परछाई से बढ़कर कोई दौलत नहीं है तेरा शहर की चकाचौंध मेरे दिल से दूर है
रामू की माँ ने सुके को आमंत्रित किया और उसकी कहानी सुनी, जिसमें उसने बताया कि कैसे शहर में सब जल्दी जल्दी करते हैं, पर यहाँ लोग एक-दूसरे का सहारा हैं माँ ने रामू से कहा बेटा, समंदर की ममता तब तक कायम रहे, जब तक तू उसमें अपनी आत्मा एक साथ जोडता रहे धीरे-धीरे, रामू ने गाँव वालों को भी समुद्र से सही तरीके से बहस करने का तरीका बताया कि समंदर से लड़ना नहीं, उससे प्रेम करना है उन्होंने इस भरोसे के साथ मेहनत की कि एक दिन उनकी झोपड़ी उस बूढ़ी झोपड़ी जैसी नहीं रहेगी और इस विश्वास के साथ, रामू ने अपनी बूढ़ी माँ के लिए नया घर बनाने की ठानी नयी लकड़ी, नया जाल, और लहरों की कहानी के साथ, एक नई शुरुआत हुई समंदर की लहरें अब भी नयी कहानियां सुनाती हैं, और रामू की झोपड़ी में माँ की हँसी गूंजती है उनकी कहानी यही सिखाती है कि जीवन में मुश्किलें आएं तो डटना नहीं चाहिए, बल्कि अपने जड़ों से जुड़े रहना चाहिए.
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