MANUSHY CHAAHE KUCH BHI KAR LE,VAH PRAKRTI/ISHWAR/BHAAGYE,PARE NAHI JA SAKATA,JIVAN OR MRUTYU BRAHMA OR VISHNU DUARA PURV NIRDHARIT HAI #PART4

20 PARTS OF THIS STORY, WHICH IS STORY STORIES IS IMAGINARY

जीवन और मृत्यु ब्रह्मा और विष्णु द्वारा पूर्व निर्धारित हैं

RAJA KUMAR PRAJAPATI

11/13/2025

इस ब्लॉग में 18 से 20 तक की कहानी है

भाग (18 ) सीख

मध्य-लोक से लौटने के बाद विशाल एक अजीब शांत अवस्था में था न भय, न दुख, न हड़बड़ी बस एक गहरी समझ उसके अंतर्मन में जड़ें जमा चुकी थी वह जान चुका था मनुष्य शरीर नश्वर है, पर कर्म अमर आत्मा की जागृति उसके भीतर धीरे-धीरे एक प्रकाश जन्म लेने लगा,वह प्रकाश बाहर का नहीं भीतर का था पहली बार उसने महसूस किया कि जीवन का उद्देश्य धन नहीं अहंकार नहीं बल्कि “स्वयं को पहचानना” है मध्य-लोक की हर चीख, हर करुणा,हर अनुभूति उसके भीतरसत्य बनकर बैठ गई थी वह समझ चुका, दूसरों को दी जाने वाली पीड़ा आखिर लौटकर स्वयं तक ही आती है और दूसरों को दी गई दया फूल बनकर मन में खिलती है,

सत्य का दरवाज़ा

उसने झुककर यमराज की ओर देखा जो मैंने समझा है, वह यह कि जीवन चाहे जैसा भी हो बिना सीख लिए वह अधूरा है अज्ञान पाप को जन्म देता है औरज्ञानमुक्ति को यमराज मुस्कुराए नहीं पर उनकी आँखों में एक प्रकाश उभरा

सत्य
सीख में है
कर्म में है
दिल में है

चित्रगुप्त बोले सीख वही जो अंदर उतर जाए जो कर्म को बदल दे विशाल चुप रहा क्योंकि अब शब्दों से अधिक अनुभव बोल रहा था,

प्रकृति का नियम

विशाल ने पहली बार प्रकृति के नियम स्पष्ट रूप से समझे

जो बोया जाता है, वही उगता है

मन जैसा होगा, कर्म वैसा होगा

कर्म जैसा होगा, फल वैसा होगा

भाग्य अवसर देता है
कर्म दिशा देता है

वह समझ गया मनुष्य प्रकृति से कभी आगे नहीं जा सकता,वह चाहे धन, शक्ति, सम्मान कितना ही पा लेयदि कर्म दूषित हैं तो अंतदर्द ही होगा और यदि कर्म शुद्ध हैं तो सुख-शांति स्वयं चलकर आएगी,

असल पीड़ा क्या है

मध्य-लोक में पीड़ा शरीर की नहीं थी क्योंकि शरीर ही नहीं था पीड़ा मन की थी यादों की थी किए गए कर्मों की थी यही समझ उसके भीतर नया द्वार खोल गई देह की यातना क्षणिक है, पर मन की यातना अनंत,

अहंकार का अंत

विशाल कभी सोचता था कि वह प्रकृति को जीत लेगा, भाग्य को बदल देगा, और अमर हो जाएगा पर अब वह समझ चुका था

अमर
कर्म हैं
मनुष्य नहीं

अहंकार जो जन्मों से उसके भीतर था, अब मंद पड़ चुका था वह जान गया अहंकार यही कहता है मैं सर्वोपरि हूँ और ज्ञान यही कहता है मैं सिर्फ एक याची हू

क्यों मिली थी असफलता

पुरानी यादें उसके आगे उभर आईं क्यों उसे बार-बार असफलता मिली अब उसे उत्तर मिला,क्योंकि कर्म स्वार्थ से जुड़े थे भलाई नाम के लिए थी सफलता अहंकार का भोजन थी इसलिए प्रकृति हर बार उसे रोक देती थी वह समझ चुका अहंकारी मन कभी सफल नहीं होता,

सच्चा धन क्या है

अब उसे समझ आया कि धन सच्चा नहीं पद सच्चा नहीं यश सच्चा नहीं सच्चा है

कर्म

विचार

दया

नम्रता

बाकी सब धूल है जीवन मतलब देना है लेना नहीं जो लेता है वह क्षणिक सुख पाता है जो देता है वह शांति पाता है

सबसे कठिन युद्ध

विशाल ने सीखा

सबसे बड़ा युद्ध
दूसरों से नहीं,
खुद से होता है

मनुष्य दूसरों को जीतना चाहता है, पर स्वयं को हारता रहता है जो खुद को जीत ले वही महान

मृत्यु क्या है

अब विशाल समझ चुका था मृत्यु अंत नहीं अवसर है

नए मार्ग का,
नई सीख का,
नए जन्म का

मृत्यु देह ले जाती है कर्म नहीं इसलिए कर्म सबसे बड़ा धन है,

अंतिम संदेश

विशाल ने अपनी आँखें बंद कर यह स्वीकार किया “जीवन भाग्य से बँधा है, पर योग्यता कर्म से और शांत सीख से प्रकृति सर्वोच्च है मनुष्य चाहे कुछ भी कर ले, वह प्रकृति से आगे नहीं जा सकता जो प्रकृति को समझ ले वह सत्य को पा लेता है और जो सत्य को पा ले वह मुक्त हो जाता है विशाल अब पुनर्जन्म की दहलीज़ पर था सीख उसके भीतर स्थिर हो चुकी थी वह अब पहले जैसा नहीं रहा वह
जाग चुका था,

भाग (19 )पुनर्जन्म की तैयारी

चित्रगुप्त की शांत आवाज़ विशाल के भीतर गूँजने लगी जैसे कोई सत्य पहाड़ की चोटी से उतरकर हृदय में समा रहा हो यमलोक में अब उसके चारों ओर मौन था न चीखें, न रुदन, न भय सिर्फ एक स्थिरता मानो सृष्टि का समय क्षणभर को ठहर गया हो,

आत्मा की स्थिति

विशाल की आत्मा अब पहले जैसी भारी नहीं थी मध्य-लोक की पीड़ायें जलकर राख हो चुकी थीं वह स्वच्छ थी हल्की थी एकदम पवित्र जैसे नदी का जल जो पत्थरों को काटते-काटते अंत में समुद्र को समर्पित हो जाता है उसके भीतर न शिकायत थी, न अंतहीन इच्छाएँ बसएक आदर प्रकृति व कर्म के नियमों के लिए,

चित्रगुप्त का संदेश

चित्रगुप्त ने कहा

विशाल,
सीख ही आत्मा को आगे ले जाती है
बिना सीख
पुनर्जन्म
फिर वही गलती दोहराता है

विशाल ने धीरे से सिर झुकाया मैं तैयार हूँ चित्रगुप्त ने एक स्वर्णिम पन्ना आकाश में उछाला वह पन्ना चमकता हुआ खुला और उस पर कुछ पंक्तियाँ उभरीं, अगला जीवन सीख का जीवन होगा अहंकार का अंत यहीं से प्रारंभ होगा,

पुनर्जन्म का कारण

हर जन्म किसी कारण से मिलता है कभी सज़ा के रूप में, कभी मौका बनकर, कभी परीक्षा की तरह विशाल का अगला जन्म एक दायित्व था क्योंकि उसने पीड़ा को समझ लिया था और जो समझ ले वह नया पात्र बन जाता है,

यमदूतों की वापसी

काले वस्त्र धारण किए यमदूत फिर प्रकट हुए इस बार उनकी आँखों में वह कठोरता नहीं थी जो पहले थी उनकी दृष्टि गंभीर थी पर शांत वे सख़्त थे, निर्दयी नहीं तुम्हारी यात्रा अब पुनः आरंभ होगी एक यमदूत ने कहा यमराज का अंतिम वचन यमराज सिंहासन से उठे और विशाल के समीप आकर बोले जीवन भाग्य का मैदान है पर कर्म उसकी दिशा बदल सकते हैं तुम्हें इस बार अपनी सीख भूलनी नहीं होगी विशाल ने हृदय से प्रण किया मैं सीखा हुआ हर शब्द अपने साथ लेकर जाऊँगा यमराज बोले

यही
मनुष्य का
सबसे बड़ा खजाना है,

आत्मा का रूपांतरण

विशाल का स्वरूप धीरे-धीरे धुंध की तरह पिघलने लगा उसका शरीर अब गायब था सिर्फ एक प्रकाश एक ऊर्जा एक चेतना वह गति पकड़ने लगी तेज़ और तेज़ जैसे समय की धार उसे किसी नए सफ़र पर ले जा रही हो,

जन्म-द्वार

अनंत शून्य खुला चमकदार द्वार उभरा,मानो ब्रह्मांड के भीतर एक और ब्रह्मांड। यहीं से आत्माएँ प्रवेश करती थीं नए जीवन की ओर विशाल उस द्वार की ओर बढ़ा,द्वार के भीतर उसे धुंधली-सी एक दुनिया दिखी हरे पेड़ों वाली, नीली नदियों वाली, मानवों से भरी वह धीरे-धीरे उसमें समाने लगा,

अंतर्मन की शपथ

प्रकाश में डूबते हुए उसने खुद से कहा मैं इस बार धन नहीं, सम्मान नहीं कर्म को चुनूँगा मैं दूसरों के आँसू अपना समझूँगा मैं प्रकृति को माता समझ चलूँगा ये वचन उसके भीतर गूँज उठे जैसे कसम नहीं,आशीर्वाद हो,

नया आरंभ

धीरे-धीरे अँधेरा छंटा और एक नवजात शिशु की रोने की आवाज़ उभरने लगी वह विशाल था नई पहचान के साथ एक छोटे साधारण गृह में, गरीब माता-पिता के आँचल में पुनर्जन्म हुआ उसका नया जीवन शुरू हो चुका था पर इस बार वह एक साधारण मनुष्य नहीं था वह सीख लेकर जन्मा था उसकी आँखों में अजीब-सी गहराई थी मानो वह कुछ याद कर रहा हो कुछ बहुत गहरा बहुत पुराना जो भूलना नहीं चाहिए,

आत्मा की मुस्कान

शिशु मुस्कुराया क्योंकि आत्मा जानती थी

“यही
वह मौका है
जहाँ से
सब बदलेगा”

अगला भाग (अंतिम)

भाग (20 ) अंतिम सत्य संदेश (कहानी का अंत)

धरा पर विशाल का नया जीवन शांत, सरल पर अर्थपूर्ण था गरीबी में जन्म, साधारण घर,साधारण परिवार पर उसके भीतर कुछ असाधारण धड़क रहा था वह बच्चा जैसे-जैसे बड़ा हुआ, उसे कभी अति धन की या वैभव की इच्छा नहीं जगी उसका मन सदा लोगों के दुख-सुख में डूब जाता था वह दूसरों की तकलीफें अपने भीतर महसूस करता अक्सर किसी की मदद करके हल्की-सी मुस्कान देता मानो वह किसी पुराने कर्ज़ को चुकता कर रहा हो,

कर्म की जागरूकता

विशाल के भीतर कर्म का एक साफ़ दिशा-बोध था उसके पिता साधारण किसान थे विशालखेतों में काम करता,पानी भरता,पशुओं की सेवा करता पर हर काम प्रेम से करता एक दिन गाँव में भीषण सूखा पड़ा लोग पानी को सोने से भी ज्यादाकीमती मानने लगे कुछ लोग पानी रोककर बेचने लगे पर विशाल ने अपना हिस्सा सबको बाँट दिया उसने कहा जो मुझे मिलेगा मिलेगा पर जो मुझे है वह सबका है लोग अचरज में थे क्योंकि वे स्वार्थी हो गए थे,पर यह युवक मानो किसी और लोक की सीख संग लाया था

ज्ञान की पुकार

धीरे-धीरे उसकी पहचान गाँव में एक बुद्धिमान युवक के रूप में होने लगी लोग उसके पास मशवरा लेने आते वह धैर्य से सुनता, और
कर्म-आधारित समाधान देता उसके शब्द छोटे होते, पर अर्थ बड़े किसी से कहता लोभ छोड़ो, शांति पाओगे किसी से सत्य रखो, फल मिलेगा किसी से कर्म कर, अहंकार मत रख और लोग महसूस करते कि उसके भीतर एक तेज़ हैजो किसी साधारण मनुष्य में नहीं होता,

स्मरण की चमक

कभी-कभी उनकी आँखों में पुरानी यादें झलक जातीं वह कुछ दृश्य देखता यमलोकमध्य-लोक,यात्रा,चित्रगुप्त,यमराज सब क्षणभर को सजीव हो उठते पर कुछ ही पल में वह नज़र लौट आती वह कभी किसी से कहता नहीं था क्योंकि वह जानता था ये उसकी आत्मा की किताब है,

बड़ा मोड़

समय बीतता गया विशाल अब युवा हो चुका था गाँव में एक महामारी फैल गई लोग डर गए हर कोई अपनी जान बचाने में लगा पर विशाल जो स्वयं को जीना नहीं, जीवन देना सीख चुका था सबके बीच कूद पड़ा वह बीमार लोगों की देखभाल करता, जड़ी-बूटियाँ लाता, खाना पकाकर बाँटता, अकेले पड़े लोगों को सांत्वना देता वह जानता था कर्म ही मनुष्य की सच्ची पहचान है

अंतिम क्षण

दिन-रात सेवा करते-करते वह स्वयं बीमार पड़ गया लोग उसे मनाते तुम आराम करो पर वह मुस्कुरा देता,

कर्म रुकता नहीं

धीरे-धीरे उसका शरीर कमज़ोर होने लगा और एक रात चाँदनी के नीचे खेत की मेड़ों पर लेटे-लेटे उसने अपनी अंतिम सांसें लीं आसमान शांत था पवन मृदु थी विशाल बहुत सहज भाव से दुनिया से अलग हुआ जैसे एक दीपक धीरे से बुझ जाए उसके चेहरे पर मुस्कान थी,

यमलोक में वापसी

अंधकार छंटा प्रकाश फैला और यमलोक का द्वार फिर खुला,यमदूत नम्रता से उसके पास आए “चलो” पर इस बार उनके स्वर में सम्मान था विशाल यमराज के सामने पहुंचे यमराज उसे देखकर बोले

तुम लौट आए
सीख को निभाकर

चित्रगुप्त पन्ने पलटने लगे पर इस बार पन्ने हल्के थे उस पर लिखा था कर्तव्य, सेवा, स्वच्छ हृदय यमराज बोले तुमने वह पाया जो मनुष्य का सर्वोच्च लक्ष्य है कर्म की पवित्रता,

मोक्ष

फिर यमराज ने कहा तुम मुक्त हो विशाल की आत्मा प्रकाश में बदलने लगी उसका बोझ खत्म हो गया जैसे नदी समुद्र में विलीन हो जाए उसके चारों ओर संगीत गूँजा शांत श्वेत दिव्य यह मोक्ष था अंतिम यात्रा अंतिम सत्य,

अंतिम संदेश

विशाल की आत्मा ब्रह्मांड में विलीन होते हुए मानो पृथ्वी पर एक संदेश लिख गई मनुष्य प्रकृति से आगे कुछ नहीं भाग्य पूर्व निर्धारित है पर कर्म उस तक पहुँचने का मार्ग तय करते हैं। धन नहीं कर्म ही मनुष्य का सच्चा धरोहर है अहंकार जीवन का सबसे बड़ा अंधकार है और सीख उसका प्रकाश जो समझ ले वही मुक्त उसकी कथा यह बता गई भाग्य बदलना संभव नहीं पर कर्म निभाना संभव है मृत्यु अंत नहीं, एक और शुरुआत है प्रकृति सर्वोपरि है मनुष्य सिर्फ एक यात्री,

कहानी का समापन

यहीं विशाल की

यात्रा पूरी हुई

मोक्ष में

और
उसके द्वारा छोड़ा गया
सत्य
सदियों तक
मानवता के लिए
दीपक बनकर
जलता रहेगा.

SLIONRAJA STUDIO

यदि आप चाहें तो इसे और भी गहराई से महसूस कराते हुए, भावनाओं के रंगों से सजाकर, और साहित्य की सौम्यता के साथ अनुवादित किया जा सकता है।

सादर,

RAJA KUMAR PRAJAPATI