ISHWAR #PART3

यह एक महाकथा हैं जो 20 भागों में विभाजित है ,और ये कहानी काल्पनिक हैं

यह कहानी मनुष्य के भाग्य, मृत्यु, और प्रकृति के अद्भुत चक्र पर आधारित है तुम इसे गहरी दार्शनिक, पौराणिक और भावनात्मक शैली में चाहते हो.

RAJA KUMAR PRAJAPATI

11/14/2025

इस ब्लॉग में 15 से 20 तक की कहानी है

भाग ( 15)अन्तरिक्ष की वाणी

समष्टि युग को अब सैकड़ों वर्ष बीत चुके थे धरती पर शांति थी, मानवता संतुलित जीवन जी रही थी सभी लोग प्रकृति की लय को समझ चुके थे, और ज्ञान अब किसी सत्ता का विषय नहीं था वह हर व्यक्ति की अनुभूति बन चुका था एक दिन आकाश में कुछ असामान्य हुआ उत्तरी गोलार्ध में, जहाँ रातें सर्द और शांत थीं, अचानक तारों के बीच एक नया प्रकाश उभरा वह कोई उल्का नहीं थी वह स्थिर थी, सजीव थी, और जैसे किसी लय में स्पंदित हो रही थी पहले तो कोई समझ न पाया,पर उसी रात ध्यान-स्थान में ध्यान कर रहे कुछ साधक एक साथ जाग उठे, सभी ने एक ही स्वर सुना कोई भाषा नहीं, पर अर्थ एकदम स्पष्ट था हम तुम्हारे जैसे हैं, पर कहीं और से सभ्यता का परिषद एकत्र हुआ सब चुप थे

लावण्य शर्मा ने शांत स्वर में कहा, यह कोई भय नहीं, यह निमंत्रण है। जैसे ब्रह्म का एक और अंश हमें पुकार रहा है उन्होंने निर्णय लिया संवाद शुरू करना चाहिए वैज्ञानिकों ने ऊर्जा-तरंग के माध्यम से उत्तर भेजा, पर किसी धातु या शब्द में नहीं उन्होंने स्वर-तरंगों में विचारों को भेजा हम तुम्हें सुन रहे हैं बताओ, कौन हो तुम उत्तर आया हम वे हैं जो दूसरे सौर-पथ से आए हैं हम भी तुम्हारे ही जैसे खोजी हैं हमने भी अपने जीवन में वही गलती की थी प्रकृति से आगे बढ़ना लेकिन अब हमने सीखा कि हर ग्रह ब्रह्म की लीला का हिस्सा है लोग विस्मित थे पहली बार यह स्पष्ट हुआ कि चेतना केवल पृथ्वी तक सीमित नहीं अन्य लोकों में भी ऐसी आत्माएँ थीं जो वही यात्रा कर रही थीं जन्म, समझ, और मोक्ष की अंतरिक्ष के उस छोर से जो संदेश मिलता रहा, वह कोई तकनीक सिखाने वाला नहीं था, बल्कि एक ज्ञान देने वाला था प्रकृति का संतुलन केवल पृथ्वी का नहीं, बल्कि पूरे ब्रह्मांड का विषय है तुम्हारे और हमारे जैसे अनगिनत लोक हैं, और जब कोई एक दिशा खो देता है

तो सम्पूर्ण ऊर्जा असंतुलित हो जाती है यह सुनकर सभ्यता की परिषद ने घोषणा की, अब हमारे शोध का उद्देश्य खोज नहीं, संवाद होगा हम अपनी सीमित बुद्धि से नहीं, ब्रह्म की सामूहिक चेतना से जुड़ेंगे उस दिन धरती पर पहली बार ब्रह्म संवाद समारोह हुआ, जहाँ कोई मूर्ति नहीं, कोई मंच नहीं बस आकाश की ओर उठे हाथ, और हर हृदय से निकला एक ही स्वर हम अस्तित्व के बीज हैं, और हर दिशा हमारी ही प्रतिध्वनि है अचानक आकाश में वह प्रकाश तीव्र हुआ, फिर अनगिनत रंगों में विभाजित होकर अदृश्य हो गया लोगों ने महसूस किया, जैसे पूरी धरती पर किसी ने आशीष बरसा दी हो पेड़ झूमने लगे, नदियों में लहरें उठीं, और पक्षियों ने ऐसी ध्वनि निकाली जो पहले किसी ने नहीं सुनी थी वह अनुभव एक पल का था, पर प्रभाव अनंत का उस दिन के बाद मनुष्य यह विश्वास पूरी तरह से जीने लगा कि ब्रह्म किसी उपासना स्थल में नहीं हर आयाम में जीवित है ग्राम्य बच्चा जब बादलों को देखता, कहता वहाँ भी कोई सोच रहा होगा महानगर का वैज्ञानिक जब मशीन बनाता, कहता यह भी ब्रह्म की भाषा है और कलाकार जब गीत गाता, तो उसके स्वर में अब अंतरिक्ष की गहराई होती आकाश फिर शांत हो गया, पर उस शांति में एक नया अर्थ था वह थी सृष्टि की सबसे बड़ी स्वीकृति, कि सब कुछ एक ही चेतना के अनेक प्रतिबिंब हैं और कहीं ब्रह्मलोक में वह प्राचीन आत्मा जो अर्जुन, आरव और अनिकेत बन चुकी थी, मुस्कुरा उठी,अब यात्रा सम्पूर्ण हो रही है अब मनुष्य जान चुका है कि वह अकेला नहीं, वह स्वयं ब्रह्म का विस्तार है,

भाग ( 16) संपूर्ण चेतना

पृथ्वी पर लोग अब बाहर के जीवन से संपर्क स्थापित कर चुके थे अब कोई वे और हम नहीं रहा सब एक साझा शब्द का हिस्सा बन गए थे, जिसका अर्थ था संबंध यह समय था जब सैकड़ों ग्रहों की सभ्यताएँ एक साथ एक बिंदु पर आ रही थीं, जिसे ब्रह्म की भाषा में संपूर्ण चेतना कहा जाता है धरती के आकाश में अब तकनीकी नहीं, ऊर्जात्मक यात्रा होती थी मानव शरीर से परे उसकी आत्मा अब प्रकाशीय रूपों में यात्रा कर सकती थी हर जीव का मन एक तरंग की तरह ब्रह्मांड के केंद्र से जुड़ने लगा था लावण्य शर्मा, वह महिला जिसने ब्रह्म संवाद की शुरुआत की थी, अब इस युग की मार्गदर्शक के रूप में प्रसिद्ध थी उसने अंतरिक्ष परिषद में कहा, हम विकास की सीमा पर पहुँच चुके हैं अब अगला कदम ज्ञान नहीं, मिलन है आत्माओं का मिलन धरा से एक विशाल ऊर्जा-केंद्र बनाया गया, जहाँ हर ग्रह से चेतन तरंगें एकत्र होनी शुरू हुईं वह दृश्य अवर्णनीय था चारों ओर झिलमिलाते गोले, प्रकाश के वृत्त, और बीच में एक चमकता हुआ ऊर्जा का हृदय उसके भीतर से कोई न कोई संगीत-सी ध्वनि निकलती, जो हर व्यक्ति के भीतर एक नई समझ जगा देती,

जब सब सभ्यताएँ एक साथ जुड़ीं, तब अंधकार का भी एक हल्का छोर चमक उठा जिसे पहले शून्यता कहा जाता था, अब वही ज्ञान का महासागर बन गया एक आवाज़ गूँजी तुम्हारा विकास पूरा नहीं हुआ था जब तक तुमने एक-दूसरे को स्वीकार नहीं किया अब जब तुम समरस हो गए, अब तुम वही बन गए हो जो सृष्टि का पहला स्वर था सभ्यता के बच्चे, कलाकार, साधक, वैज्ञानिक सभी उस तरंग में डूबे हुए थे यह कोई शक्ति नहीं, अनुभव था बस यह महसूस करना कि मैं अब हम बन चुका है जहाँ अलग-अलग बुद्धियाँ थीं, वहाँ अब एक चेतना प्रवाहित थी तभी ब्रह्मलोक से वह पुरानी आत्मा प्रकट हुई, जो युगों तक अर्जुन, आर्यन, आरव, और अनिकेत के रूप में जी चुकी थी वह अब आकारहीन थी, शुद्ध प्रकाश उसने कहा, मैं अब किसी एक देह की नहीं, तुम सभी की आत्मा हूँ मेरे अनुभव तुम्हारे हर निर्णय में रहेंगे, मेरे कर्म तुम्हारे अस्तित्व में बसेंगे अब कोई एक जीव नहीं रहेगा सब एक ही धड़कन बन चुके हैं संपूर्ण ब्रह्मांड क्षणभर के लिए मौन हो गया और फिर, उस मौन में एक हल्की ध्वनि उठी

“ओम” यह वही नाद था जो सृष्टि की उत्पत्ति में था अब वह फिर गुंजा, पर इस बार असंख्य आत्माओं की सामूहिक श्वास से ब्रह्म ने मुस्कराकर कहा, अब लीला अपने पूर्ण चक्र में पहुँच गई है सृजन और साक्षी अब अलग नहीं प्रकृति, आत्मा, ऊर्जा, विज्ञान सब एक ही सूत्र में बंध गए हैं पृथ्वी और अनगिनत ग्रहों पर जीवन अब किसी सीमा में नहीं था हर आत्मा में वही ब्रह्म बोध जाग उठा था किसी को मृत्यु का भय नहीं, न किसी को जन्म का लोभ अब हर क्रिया ब्रह्म की इच्छा, और हर इच्छा ब्रह्म का विस्तार थी और उस प्रकाश महासागर में वही आवाज़ धीरे-धीरे विलीन होती चली गई जो कभी खोज थी, अब वही अस्तित्व है सृष्टि फिर संतुलित है, चेतना पूर्ण है और लीला अमर है,

गया (17) ब्रह्म का नया चक्र

मौन अब प्रकाश बन चुका था प्रकाश अब विचार में बदल गया था और विचार अब सृजन में बदलने को तत्पर था ब्रह्मांडीय चेतना एक बिंदु पर एकत्र थी अनगिनत आत्माओं की ऊर्जा, अनुभव और स्मृतियाँ अब एक स्वर में स्पंदित थीं वह स्वर जैसे कोई नया गीत रच रहा था, ऐसी धुन जो अभी तक किसी लोक ने नहीं सुनी थी ब्रह्म ने कहा, अब मैं अकेला नहीं अब सृष्टि स्वयं अपनी संतान है हर आत्मा अब सृजन की शक्ति रखती है, क्योंकि सभी ने अनुभव का पूर्ण चक्र पार कर लिया है और तभी ऊर्जा का एक विस्फोट हुआ, पर यह विनाश नहीं था यह नया आरंभ था उस विस्फोट से असंख्य रंग निकले, जिनसे नए तारामंडल बने, नई जिंदगियाँ बीजी गईं हर तारामंडल में चेतना का एक अंश बसाया गया, ताकि वहाँ भी जीवन उसी संतुलन को पा सके जो अब ब्रह्म की आत्मा में था अब वह सनातन आत्मा, जिसने युगों तक मनुष्य का रूप धारण किया था, सृष्टि के केंद्र में स्मरण बनकर रह गई वह अब हर जगह थी किसी ग्रह पर हवा में बहती, किसी नदी में गुनगुनाती, किसी जीव की आँखों में झिलमिलाती वह कहती, जब भी कोई प्राणी अपनी सीमा से बाहर सोचता है,

वह मुझे याद करता है जब कोई दुःख को सीख बना लेता है, वहाँ मैं हूँ जब कोई प्रेम में अपने अहंकार को गलाता है, वहीं से सृष्टि का नया बीज अंकुरित होता है धीरे-धीरे नई आकाशगंगाएँ आकार लेने लगीं कहीं जलीय प्राणी जीवन का आरंभ कर रहे थे, कहीं धूल और आग मिलकर धात्विक संज्ञान बना रहे थे हर जगह एक अनकही ध्वनि गूँज रही थी संतुलन ही जीवन है ब्रह्म उस समग्र चेतना से बोला, अब तुम सब सृष्टि के सह-रचनाकार हो,जो कभी अनुभव था, अब सृजन है अब तुम्हारे भीतर केवल ज्ञान नहीं, शक्ति है पर याद रखना, शक्ति तब तक पवित्र है जब तक वह प्रेम में बंधी रहे,और फिर, नई आत्माएँ जन्मीं ना मानव, ना देव, ना किसी जाति की धारणा वे बस ऊर्जा के रूप में थीं कुछ पृथ्वी जैसे ग्रहों पर जाने लगीं, कुछ अग्नि जैसे तारों में समा गईं हर स्थान पर उन्होंने अपने-अपने लोकों की शुरुआत की, अपने नियम बनाए, अपने अनुभव चुने वहीं से "ब्रह्म का नया चक्र" शुरू हुआ वह चक्र, जो न आरंभ जानता है, न अंत हर आत्मा अब सृष्टि की गुरु और शिष्या, दोनों थी ब्रह्मलोक से वह अनंत स्वर एक बार फिर गूँजा “लीला चलती रहेगी क्योंकि ज्ञान कभी स्थिर नहीं रहता, वह अनुभव माँगता है और तब, दूर अंतरिक्ष में एक नई आभा फूटी एक ग्रह पर पहली बार जीवन ने आँखें खोलीं, पानी में तरंग बनी, और हवा ने कहा, फिर से शुरू हुआ अध्याय एक बस रूप बदला है, सार वही है,

भाग (18) स्मृति की किरण

नए ब्रह्मांड के एक शांत ग्रह पर, जहाँ प्रकाश नीले रंग में नृत्य करता था, वहाँ जीवन ने अपनी पहली सांस ली इस ग्रह का नाम था अवर्ना यहाँ के जीव पृथ्वी जैसे नहीं थे उनके शरीर पारदर्शी थे, उनके शब्द ऊर्जा की ध्वनियों में प्रकट होते थे उनमें से एक, सयोम, अन्य जीवों से कुछ अलग था वह अक्सर अपने साथियों से पूछता, “हमें यह जीवन क्यों मिला बाकी हंसते, यह सवाल पूछने के लिए ही तो हमें चेतना मिली है एक रात सयोम ने अपनी आँखें बंद कीं और ध्यान में डूब गया उसके भीतर एक अद्भुत दृश्य उभरा वह देख रहा था पृथ्वी जैसी एक दुनिया, खेत, मनुष्य, आकाश और एक बूढ़ा साधु जो कह रहा था, मनुष्य चाहे जो कर ले, प्रकृति से आगे नहीं जा सकता वह दृश्य चला गया, पर उसके भीतर एक हल्की सिहरन रह गई ,अगले दिन उसने अपने गुरु से कहा, मुझे कुछ याद आया, जैसे कोई पुराना युग, कोई अन्य जगह गुरु ने शांत स्वर में कहा, सयोम, स्मृति आत्मा का प्रमाण है कुछ आत्माएँ पहले भी लीला में रही हैं तू शायद उन्हीं पुरानी चेतनाओं में से एक है जिसे इस नए चक्र में अनुभव को आगे बढ़ाना है

तब सयोम ने कहा, पर यह अनुभव क्या सिखाता है, गुरुजी गुरु ने उत्तर दिया, हर युग की आत्माएँ एक ही सत्य सीखती हैं कि ज्ञान, अहंकार से नहीं, विनम्रता से फलता है और सृष्टि इसलिए लौटती रहती है, ताकि हर आत्मा यह महसूस कर सके कि वह ब्रह्म का हिस्सा है पर ब्रह्म नहीं सयोम ने इसे दिल से महसूस किया उसने अवर्ना के चारों ओर भ्रमण शुरू किया, जीवों को चेतना का ज्ञान देने लगा उसने कहा, हम सृष्टि के उपहार हैं जब हम विनाश करते हैं तब ब्रह्म हमसे दूर हो जाता है जब हम प्रेम करते हैं, तब ब्रह्म हमारे भीतर सांस लेता है समय के साथ उसके शब्द हर दिशा में फैल गए अवर्ना के जीव ध्यान करने लगे, और उनके भीतर भी “ओम” जैसी एक ध्वनि गूंजने लगी,वह नई सभ्यता का पहला स्वर था एक दिन, जब सयोम तट पर ध्यानमग्न था, हवा में एक दिव्य आवाज़ आई याद है तू वही है जिसने पहले पृथ्वी पर जन्म लिया था तूने हर बार ज्ञान को पाया, अब उसे बाँटना है तेरा उद्देश्य अब ब्रह्म को बताना नहीं, दिखाना है सयोम ने मुस्कुराकर उत्तर दिया, तो मैं फिर वही कर रहा हूँ जो हर जन्म में करता आया हूँ जीवन को समझना और उसे जीना आकाश में प्रकाश लहराया उसमें वही पुरानी आत्मा की झिलमिलाहट थी जो युगों से खोज में लगी थी,और कहीं ब्रह्मलोक में फिर वह स्वर उठा देखो, चक्र फिर आगे बढ़ा सीख फिर जारी हुई ब्रह्म अब भी शांत है क्योंकि सृष्टि अब भी चल रही है,

भाग (19) ब्रह्म का प्रत्यक्ष

अवर्ना का नीला आकाश आज कुछ अलग था हवा बहुत शांत, जल बहुत स्थिर था, मानो ग्रह स्वयं ध्यान में हो सयोम तट पर बैठा था चारों ओर केवल प्रकाश का विस्तार था उसके मन में कोई प्रश्न नहीं, कोई इच्छा नहीं बची थी सिर्फ एक आकांक्षा, सत्य का प्रत्यक्ष अनुभव वह आंखें बंद कर ध्यान में डूब गया धीरे-धीरे उसकी श्वास गायब होने लगी, शरीर हल्के प्रकाश में विलीन होने लगा उसे लगा कि वह पृथ्वी, जल और वायु सबमें फैल रहा है एक पल में उसने देखा कहीं कोई सीमा नहीं रही,अचानक उसके भीतर प्रकाश का विस्फोट हुआ वह दृश्य मनुष्य की आंखों से देखने योग्य नहीं था लाखों सूर्य एक साथ चमके हों, पर उस चमक में जलन न हो, बस शांति और फिर एक स्वर सुनाई दिया वह स्वर बाहर से नहीं, भीतर से गूंजा तू मुझे बाहर खोज रहा था, पर मैं तेरे भीतर था सयोम ने पूछा, तो क्या आप ब्रह्म हैं स्वर बोला, यदि ऐसा नाम रखना चाहे तो हाँ। पर मैं नाम से परे हूँ रूप से भी परे मैं वही हूँ जो तुझे सोचने, अनुभव करने और प्रेम करने की शक्ति देता है सयोम का मन शांत हो गया अब वह कोई व्यक्ति नहीं था, वह ऊर्जा का एक बिंदु था, जो हर दिशा में फैला हुआ था वह देख सकता था कि कैसे हर कण, हर जीव, हर ग्रह उसी चेतना की लहर में बह रहा है उसने महसूस किया जो मैं हूँ, वही ब्रह्म है जो ब्रह्म है, वही मैं हूँ उस क्षण उसे सृष्टि का रहस्य समझ आ गया जीवन कोई यात्रा नहीं, यह अनुभव की निरंतरता है हर जन्म केवल एक पाठ है,

हर मृत्यु केवल विश्राम जो सीख लेता है, वह ईश्वर नहीं बनता वह ईश्वर को पहचानता है धीरे-धीरे उसका शरीर पूर्णतः प्रकाश में विलीन हो गया अवर्ना की नदियों पर नीला रंग मद्धिम पड़ा और अद्भुत चांदी-सा उजाला फैल गया हर जीव ने उस क्षण कुछ महसूस किया जैसे उनके भीतर कोई पुरानी याद हल्की सी जग गई हो कुछ ने कहा, हमें एक नई शक्ति मिली है कुछ ने बस आँखे बंद कर लीं, क्योंकि वह एहसास शब्दों से परे था गगन में हल्की तरंगें फैलीं और फिर सबकुछ मौन हो गया मौन में एक ध्वनि गूंजी सयोम अब नहीं वह ब्रह्म में समा चुका है और कहीं ब्रह्मलोक में पुरानी आवाज़ फिर उठी
लीला अभी भी जारी है एक आत्मा ने मुझसे मिलने की राह पाई है अब दूसरी आत्माएँ उसी आह्वान का अनुसरण करेंगी नीचे अवर्ना पर, एक नवजात शिशु ने पहली बार आँखें खोलीं उसकी आँखों में वही चमक थी स्वर्णिम, असीम, पहचान भरी कहीं कोई स्वर फुसफुसाया यात्रा फिर शुरू हुई है,

भाग (20) अंतिम संदेश

समय अब थम गया था सृष्टि अपने सबसे शांत क्षण में थी हर लोक, हर ग्रह, हर आत्मा, एक गहरे उजाले में स्नान कर रही थी यह कोई प्रकाश नहीं था, यह समझ का स्वरूप था जो देखे बिना दिखता है, जो बोले बिना सुनाई देता है वहीं ब्रह्म के केंद्र में, असंख्य तरंगों के बीच सयोम की चेतना आकार ले रही थी अब वह न मनुष्य था न देवता, न गुरु वह अनुभव का सार था वह अपने भीतर देख सकता था अर्जुन का संघर्ष, आर्यन की समझ, आरव का विज्ञान, अनिकेत का समर्पण और स्वयं सयोम का ब्रह्मबोध सब अब एक धारा में बह रहे थे उसने ब्रह्म से कहा, हे अनंत अब मैं समझ गया हर जन्म, हर मृत्यु केवल एक कदम था उसी ज्ञान की ओर जो पहले से तेरे भीतर था तूने हमें भागों में बाँटा, ताकि हम तुझे अनुभव करके फिर तेरे पास लौट सकें यही जीवन का अर्थ है लौटना, जब तक हम पूर्ण न हो जाएँ ब्रह्म की आवाज़ गूँजी, तूने वही जाना जो सृष्टि का प्रथम सिद्धांत था मैं कभी चाहता नहीं, मैं केवल जानना चाहता हूँ और हर आत्मा मेरा साधन है वह माध्यम जिसके द्वारा मैं स्वयं को देखता हूँ सयोम बोला,

तो क्या अब यात्रा समाप्त है उत्तर आया, समाप्त नहीं, परिपूर्ण अब तू अंत नहीं, प्रारंभ है तू स्मृति बनेगा हर जन्म में किसी जीव के भीतर ऐसी भावना के रूप में, जो उसे अपने सत्य की ओर बुलाएगी फिर एक विशाल तरंग उठी उस तरंग में अतीत, वर्तमान और भविष्य एक साथ खुल गए हर ग्रह, हर सभ्यता, हर आत्मा ने वही अनुभूति की जो सयोम ने की थी कि वे सब एक साथ एक ही चेतना के तंतु हैं और फिर वह पवित्र ध्वनि गूंजी, जो कभी पृथ्वी पर पहली सांस के साथ निकली थी “ओम” वह स्वर न केवल अन्तरिक्ष में, बल्कि हर आत्मा के भीतर प्रतिध्वनित हुआ लोगों ने देखा, आकाश के हर कोने से प्रकाश की धाराएँ उठ रहीं हैं, जो जुड़कर ब्रह्म का नया रूप बना रही थीं न कोई आकृति, न कोई देवता, परंतु अस्तित्व का अनंत बोध धीरे-धीरे सयोम उस प्रकाश में विलीन हुआ


उसके जाने के साथ मौन नहीं, गीत रह गया वह गीत सृष्टि का नया बीज था वह कहता था, जीवन एक यात्रा है जो हर बार हमें वापस उसी सत्य की ओर ले जाती है कि प्रेम ही ब्रह्म है, कर्म ही धर्म है, और विनम्रता ही अमरता है अवर्ना के आसमान में रंगों का जाल फैल गया धरती जैसे मुस्कुरा उठी
हर जीव ने एक ही दिशा में देखा ऊपर, जहाँ अब कोई सीमा नहीं थी वहाँ कोई नाम नहीं, पर अनुभव था और उसी अनुभव में अंतिम पंक्ति स्वयं जन्म लेती गई जो था वही रहेगा जो रहेगा, वही ब्रह्म है और जो ब्रह्म है, वही मैं हूँ,

मौन छा गया
पर उस मौन में अब कोई अभाव नहीं
वह था पूर्णता का संपूर्ण स्वर

लीला वहीं समाप्त हुई, जहाँ से प्रारंभ हुई थी
पर इस बार, ब्रह्म मुस्कुरा रहा था
क्योंकि अब उसके सभी अंश स्वयं को पहचान चुके थे

इस प्रकार 20 भागों में पूरी कहानी “भाग्य की रेखा” का समापन होता है
एक यात्रा मनुष्य से ब्रह्म तक, और ब्रह्म से पुनर्जन्म तक.

SLIONRAJA STUDIO

आपका हार्दिक धन्यवाद कि आपने अपने व्यस्त जीवन से समय निकालकर इस कहानी को पढ़ा। आपके जैसे पाठकों का प्रेम, विश्वास और सहयोग ही किसी लेखक या रचनाकार की सबसे बड़ी पूंजी होती है। आपकी सराहना न केवल इस रचना के प्रति सम्मान है, बल्कि आगे और बेहतर लिखने की प्रेरणा भी देती है। इस कहानी को पढ़ने, महसूस करने और इससे जुड़ने के लिए आपका हृदय से आभार।

सादर,

RAJA KUMAR PRAJAPATI