HEER RANJHA
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HEER RANJHA LOVER
10/20/2025
कहानी -हीरांवन की चाँदनी
हीरांवन नाम का गाँव पंजाब की मिट्टी में बसा था जहाँ हर सुबह मिट्टी की खुशबू और बैलों की घंटियों की ध्वनि मिलकर जीवन को एक नई रागिनी देती थी। इसी गाँव के किनारे, बड़ के पेड़ों और गेहूँ के सुनहरे खेतों के बीच रहता था रांझा एक शांत, गंभीर, और संगीत प्रेमी युवक। उसकी बाँसुरी में ऐसी तान थी कि पक्षी भी चुप होकर उसकी धुन सुनते,रांझा का परिवार गाँव में सम्मानित था उसके पिता मीर अहमद खान गाँव के बुजुर्ग मुखिया थे, सच्चे, न्यायप्रिय और कर्मठ किसान उसकी माँ जुबैदा बीबी पूरे गाँव में अपने हाथों के खाने और दुआओं के लिए जानी जाती थी रांझा के दो बड़े भाई खेतों के काम में लगे रहते, पर रांझा का मन हमेशा किसी अनकहे सपने की तलाश में भटकता रहता, गाँव से ज़्यादा दूर नहीं,
राजा सुलतान सिंह का किला था। वह इस इलाके का राजा था साहसी, पर कभी‑कभी अपने गर्व में अंधा उसके दरबार में हंसी‑ठिठोली और ताकत दोनों का बोलबाला था राजा के पास सब कुछ था, सिवाय सच्चे सुकून के एक दिन राजा की छोटी बहन हीर अपने सेवकों के साथ वन में फूल तोड़ने आई वह बचपन से ही विलासी जीवन से ऊब चुकी थी। उसे दरबार की राजनीति और आडंबर पसंद नहीं था जैसे ही उसकी नज़र सुनहरी धूप के बीच किसी झाड़ी के किनारे बैठे रांझा पर पड़ी जो बाँसुरी बजा रहा था सब कुछ ठहर‑सा गया बाँसुरी की तान जैसे उसकी आत्मा में उतर गई हीर ने पहली बार किसी राजकुमार की जगह एक किसान युवक के चेहरे में सच्चाई और शांति देखी। रांझा ने भी जब उसकी आँखों में देखा, तो उसे लगा जैसे वह प्रकृति की सबसे सुंदर
कविता पढ़ रहा हो, कुछ ही दिनों में, दोनों की मुलाकातें जंगल के बीच होने लगीं। हरे‑भरे पेड़ों, झूलते आम्रवृक्षों और रंग,बिरंगे फूलों के बीच उनका प्रेम अंकुरित होने लगा गाँव के कुछ चरवाहे अक्सर दूर से उन्हें मुस्कुराते हुए देख लेते, पर कोई कुछ कहने की हिम्मत नहीं करता क्योंकि रांझा सबका प्यारा थाधीरे‑धीरे हीर का सेवक कुंदन यह बात महल तक ले गया राजा सुलतान सिंह को जब पता चला कि उसकी बहन किसी किसान युवक से मिलती है तो उसके भीतर आग जल उठी। उसने सैनिक भेजकर रांझा को पकड़वाने का आदेश दिया उसी रात हीर को यह खबर मिली वह अपने महल की दीवार फाँदकर रांझा के गाँव पहुँची। गाँव के लोग जाग उठे राजकुमारी हीर यहाँ सब हैरान रह गए रांझा के पिता ने दरवाज़े पर खड़े होकर कहा, बेटी ये रास्ता तूने सोच‑समझकर चुना है हीर बोली हाँ बाबा, मैं धन-संपत्ति छोड़ने आई हूँ पर सच्चे इंसान को नहीं छोड़ सकती,मीर अहमद खान कुछ पल चुप रहे। फिर बोले अगर प्रेम सच्चा है, तो उसे डर से नहीं, सम्मान से जीना चाहिए पूरे गाँव ने मिलकर राजा को संदेश भेजा राजन, अगर प्रेम पवित्र हो, तो उसमें क्रोध का क्या काम राजा सुलतान सिंह क्रोध से काँप उठा, पर उसकी बहन के आँसू देखकर उसका दिल पिघल गया उसने दरबार में घोषणा की मैं इस प्रेम का विरोध नहीं करूँगा मेरी बहन मुझे अपनी नहीं, एक इंसान की दुनिया दिखाने आई है गाँव में उत्सव हुआ ढोल बजने लगे, मिट्टी में दीपक जले और
आकाश में जैसे चाँदनी उतर आई रांझा ने उसी शाम बाँसुरी उठाई और धीरे से कहा अब ये धुन केवल प्रेम की नहीं, पूरे गाँव की है हीर ने मुस्कुराकर उसका हाथ थाम लिया। “हमारा हीरांवन अब प्रेम का गाँव कहलाएगा उसने कहा राजा, रांझा का परिवार, और गाँववाले सबने मिलकर एक विशाल आम का बाग लगाया जो आज तक हीरांवन में फलता है लोग कहते हैं कि उस बाग की हवा में अब भी उस प्रेम की सुगंध बसी है जो किसी नदियों या सीमाओं से नहीं, दिलों से जुड़ा था,
हीरांवन की चाँदनी – भाग 2. नई सुबह का इम्तिहान
शादी के बाद हीर और रांझा का जीवन हीरांवन गाँव का गर्व बन गया हर सुबह रांझा खेतों में काम करता, और हीर अपने हाथों से गाँव के बच्चों को पढ़ाती वह चाहती थी कि हर बच्चा अक्षर पहचान सके, हर लड़की अपने पैरों पर खड़ी हो सके राजा सुलतान सिंह अक्सर उनकी झोपड़ी का हालचाल पूछने आता। अपनी बहन को इतनी खुश देखकर उसका मन भी बदल गया था उसने अपने सैनिकों से कहा अब तलवारें खेत जोतने के काम आएँगी इस आदेश से पूरे राज्य में शांति फैल गई, लेकिन हर खुशी को ईर्ष्या की नज़र लगती है गाँव में भरो नाम का एक व्यापारी था, जो राजा का पुराना कारिंदा़ रह चुका था
उसे रांझा और हीर का बढ़ता सम्मान सहन नहीं हुआ वह कहता एक साधारण किसान और उसकी बीवी अब हमारी बातों से ऊँचे हो गए ऐसा नहीं चलेगा भरो ने धीरे‑धीरे अफवाहें फैलानी शुरू कीं कि रांझा और हीर गाँव के लोगों को राजा के ख़िलाफ भड़काने की सोच रहे हैं जब ये बात राजा तक पहुँची, उसका मन कुछ पल के लिए डगमगाया पर वह अपनी बहन पर विश्वास करता था फिर भी उसने सत्य जानने के लिए रांझा को बुलवाया दरबार में रांझा शांति से बोला राजन, जिसने प्रेम से क्रांति की है, वह द्वेष से कैसे विद्रोह करेगा राजा ने उसकी बातें सुनीं, पर मुखिया मीर अहमद ने आगे बढ़कर कहा राजन, बेटा झूठ नहीं बोलता अगर झूठ साबित हो, तो पहले मेरा सिर कटे राजा शांत हो गया उसने भरो को बुलाया कुछ ही क्षणों की पूछताछ में सच्चाई सामने आ गई अफवाहें उसी ने फैलाई थीं सुलतान सिंह ने उसे गाँव से निकालने का आदेश दिया गाँव में एक बार फिर खुशी लौट आई मगर रांझा और हीर ने फैसला किया कि वे अब केवल अपने जीवन तक सीमित नहीं रहेंगे उन्होंने हीरांवन में एक छोटा सेवा केंद्र बनाया जहाँ
अनाज, औषधि और शिक्षा सब बिना किसी भेदभाव के मुफ्त दी जाती थी हीर रोज़ बच्चों को कहानियाँ सुनाती, और रांझा अपनी बाँसुरी के सुरों से उनके मनों में शांति भर देता है धीरे‑धीरे हीरांवन एक साधारण गाँव नहीं रहा वह प्रेम, शिक्षा और एकता का प्रतीक बन गया एक दिन रांझा ने कहा,हीर, क्या तुझे कभी डर नहीं लगता कि ये सब खत्म हो सकता है हीर मुस्कुराई, जब तक लोग प्रेम में विश्वास रखेंगे हीरांवन कभी खत्म नहीं होगा
रात को जब पूरा गाँव सोता, तो हल्की हवा में बाँसुरी की मीठी तान गूँजती लोग कहते, वह रांझा की नहीं उस प्रेम की आवाज़ है जो हर दिल में बसना चाहता है,
हीरांवन की चाँदनी – भाग 3. एक अनसुनी आहट
हीरांवन अब शांति और समृद्धि का प्रतीक बन चुका था बच्चे पढ़ने लगे थे, खेतों में हरियाली लौट आई थी और हवा में रांझा की बाँसुरी की तान मिलती थी लेकिन कुछ दूर पहाड़ियों के पार एक अजनबी ठिकाना था, जहाँ हर रात रहस्यमयी धुएँ के बादल उठते लोग कहने लगे वहाँ कोई अज्ञात साधु रहता है, जो अंधेरे जादू का अभ्यास करता है एक रात गाँव की आठ गायें अचानक गायब हो गईं खोजबीन के बाद पता चला कि पास के जंगल में कुछ विचित्र चिह्न बने हुए हैं जैसे किसी ने आग से वृत्त बनाकर कोई अनुष्ठान किया हो गाँव के बुजुर्ग भयभीत थे
रांझा ने कहा, डर का इलाज छिपने में नहीं, सामना करने में है वह और हीर दोनों जंगल की ओर निकले, चाँद आधा ढका हुआ था और हवा में अजीब‑सी सिहरन थी। चलते‑चलते उन्हें दूर एक टूटा‑सा झोंपड़ा दिखा, जिसके भीतर दीपक की लौ जल रही थी अंदर एक वृद्ध साधु बैठा था चेहरा झुर्रियों से भरा, आँखें लाल जैसे वर्षों से नींद न देखी हो उसने कहा, हीरांवन की भूमि बहुत समय पहले श्रापित हुई थी मैंने उस श्राप को दबाकर रखा, पर अब प्रेम की शक्ति ने उसे जगा दिया है हीर ने कहा, श्राप प्रेम से कैसे जाग सकता है साधु बोला, क्योंकि प्रेम सत्य है, और सत्य हर छुपे अंधेरे को उजागर कर देता है साधु ने बताया कि सौ वर्ष पहले यहाँ एक तांत्रिक ने अपनी शक्ति सिद्ध करने के लिए गाँव के सात प्राणियों की बलि दी थी, मगर आठवां रांझा जैसा युवक बच निकला था उसी युवक की आत्मा अब पुनः जनम लेकर आई है
रांझा के रूप में वह बोला, अगर प्रेम सच्चा है, तो रांझा को इस श्राप को स्वयं पर लेकर तोड़ना होगा हीर काँप उठी नहीं, मैंने उसे पाया है खोने के लिए नहीं पर रांझा ने शांत स्वर में कहा, अगर मेरे त्याग से हीरांवन का भविष्य सुरक्षित रहेगा, तो यह मेरा धर्म होगारात के तीसरे पहर रांझा उस झोंपड़ी के सामने खड़ा हुआ साधु ने मंत्र पढ़े और एक अग्नि‑वृत्त बनाया। हवा में बिजली‑सी चमकी। रांझा ने आँखें बंद कीं और मन ही मन कहा, हे ईश्वर, मेरे प्रेम की रक्षा करना अचानक अग्नि बुझ गई। हीर दौड़कर पहुँची तो रांझा बेहोश था, पर उसका चेहरा शांत था जैसे किसी गहरी नींद में हो साधु बोला, श्राप खत्म हुआ पर उसका शरीर अब इस लोक का नहीं रहा गाँव वाले उसे लेकर लौटे, और हीर ने उसे उसी आम के बाग़ के नीचे दफनाया जो उन्होंने साथ लगाया था हर रात वह वहीं बैठकर बाँसुरी बजाती मानो उसकी आत्मा रांझा की धुन से बात कर रही हो लोग कहते हैं कि जब भी हीरांवन में हल्की हवा चलती है, तो उसमें बाँसुरी की तान सुनाई देती है जैसे रांझा और हीर आज भी उस प्रेम की रखवाली कर रहे हों, जिसने डर को पराजित किया था,
हीरांवन की चाँदनी – भाग 4. आत्मा का पुनर्जागरण
रांझा के जाने के बाद हीरांवन की हवा जैसे बोझिल हो गई थी
हीर रोज़ उसी आम के पेड़ के नीचे बैठती, जहाँ रांझा सोया था उसकी आँखों में आंसू नहीं थे, बस एक गहरी प्रतीक्षा थी। गाँव के लोग कहते हीर अब शब्दों से नहीं, मौन से संवाद करती है दिन महीनों में और महीने वर्षों में बदल गए गाँव में बच्चों की नई पीढ़ी आई, मगर हर पीढ़ी को यह सिखाया गया कि प्रेम का अर्थ लेना नहीं, देना होता है हीर अब माँ हीर के नाम से जानी जाने लगी थी जो अनाथ बच्चों को अपने पास रखती, उन्हें सिखाती और कभी थकती नहीं थी एक रात वह उसी बाग़ की पगडंडी पर चली गई जहाँ रांझा की कब्र थी चाँद पूरा था, और हवा में हल्की‑सी बाँसुरी की तान गूँज उठी हीर ठिठक गई ये वही स्वर है आम के पेड़ों की पत्तियाँ कांपने लगीं जैसे कोई पुरानी आत्मा फिर जाग उठी हो हीर ने देखा एक युवक ठीक सामने खड़ा था, पर चेहरा साफ़ नहीं दिख रहा था उसके हाथ में बाँसुरी थी वह बोला मैं
रांझा नहीं, पर उसके स्वर का अंश हूँ मेरा नाम आर्यन है कहते हैं मेरे सपनों में एक बाँसुरी बजती है, और मैं उसी ध्वनि को ढूँढने आया हूँ हीर मुस्कुराई, उसकी आँखें नम हो गईं उसके मन में तुरंत आभास हुआ कि यह युवक वही आत्मा है जो अब नए रूप में लौटी है। उसने कहा, तुझमें उसी की चमक है, जिस प्रेम ने इस गाँव को बचाया था अगले दिन आर्यन ने गाँव में रहना शुरू किया। उसने उस सेवा केंद्र की जिम्मेदारी संभाली जो कभी हीर और रांझा ने शुरू किया था गाँववाले उसे पहचानने लगे उसकी बाँसुरी में वही जादू है जो बरसों पहले रांझा की थी हीर अब वृद्ध हो चुकी थी एक दिन उसने आर्यन से कहा जब तुम बाँसुरी बजाओ, तो याद रखना यह स्वर किसी प्रेमी का नहीं, बल्कि उस शक्ति का प्रतीक है जो संसार को जोड़ती है फिर उस रात्रि, जब आर्यन बाँसुरी बजा रहा था, हीर ने शांत मन से आँखें बंद कीं उसकी देह मिट्टी में मिल गई पर उसके होंठों पर मुस्कान थी
अचानक बाँसुरी की धुन तेज़ हुई, और आसमान से हल्की चाँदनी उतर आई जैसे दोनों आत्माएँ फिर से मिल गईं लोगों ने देखा कि हीर की कब्र के ऊपर आम का पेड़ और हरा हो गया है, और उससे हर वसंत में दो फूल निकलते हैं एक सुगंध भरा और एक धूमिल रंग का गाँववाले कहते हैं, वो फूल हीर और रांझा की आत्माएँ हैं, जो आज भी एक‑दूसरे को हर सांस में खोज रही हैं रात के आख़िरी पहर, जब हवा ठंडी होती है, बाँसुरी की धुन अब भी सुनाई देती है यह याद दिलाने के लिए कि सच्चा प्रेम मरता नहीं, बस रूप बदलता है,
हीरांवन की चाँदनी – भाग 6. लौट आए सुरों के साये
सन् 2025
हीरांवन अब बदल चुका था जहाँ कभी मिट्टी के घर और बैलों की गाड़ियाँ हुआ करती थीं, वहीं अब सोलर लाइटें, स्मार्टफोन और आधुनिक स्कूलों की रौनक थी लेकिन गाँव के बीचोंबीच वही पुराना आम का बाग़ अब भी खड़ा था जिसके नीचे हीर और रांझा की समाधियाँ एक पत्थर पर खुदी थीं लोग अब उसे एक किंवदंती मानते थे। बहुत‑से शहरों से लोग आकर उस स्थान पर दीपक जलाते, पर असली कहानी किसी को नहीं पता थी एक दिन दिल्ली से एक युवती रिया मल्होत्रा शोध कार्य के सिलसिले में हीरांवन आई वह लोककथाओं की रिसर्चर थी और प्रेम कथाओं पर अपने डॉक्यूमेंट्री प्रोजेक्ट के लिए सामग्री एकत्र कर रही थी गाँव के बुजुर्गों ने जब
उसे हीरांवन की दास्तान सुनाई, तो उसके भीतर जैसे कुछ जाग उठा। रात को उसने उस बाग़ में अकेले जाने का निश्चय किया हवा में हल्की‑सी बाँसुरी की तान गूँज रही थी पर आस‑पास कोई नहीं था रिया के कदम अपने आप उस तान की दिशा में बढ़ने लगे। आम के पेड़ के नीचे उसे एक पुराना बाँस का टुकड़ा मिला, जैसे किसी ने उसे सालों पहले छोड़ दिया हो उसने अनजाने में उसे होंठों पर लगाया और वो बाँसुरी अपने आप बज उठी स्वर इतना मधुर था कि पेड़ों की पत्तियाँ तक कांप उठीं उसी क्षण उसे पीछे से आवाज़ सुनाई दी ये धुन तुमसे पहले भी किसी ने बजाई थी रिया पलटी एक युवक खड़ा था, नाम आर्यमन वह गाँव का स्थानीय कलाकार था, जो बाँसुरी बनाता था दोनों की मुलाकातें दिन‑ब‑दिन बढ़ने लगीं रिया जब भी बाँसुरी बजाती, आर्यमन उसकी धुन पर शब्द लिखता है धीरे‑धीरे उनके बीच कुछ ऐसा जुड़ाव बना जो अनकहा था वही शांति, वही गहराई जो सदियों पहले हीर और रांझा के बीच थी एक शाम रिया ने पूछा, क्या तुम कभी महसूस करते हो कि ये जगह हमें पुकारती है
आर्यमन मुस्कुराया, कभी-कभी लगता है जैसे ये हवा हमें किसी अधूरी कहानी का हिस्सा बना रही हो उसी रात बिजली कड़कने लगी, और हवा में वही पुरानी धुन गूँज उठी जो माना जाता था कि रांझा की आत्मा कभी बजाया करती थी रिया ने देखा कि आम के दो फूल हवा में झूम रहे हैं एक लाल, एक सफेद अचानक आर्यमन की आँखों में आँसू थे, उसने धीरे से कहा, शायद हम वही हैं जो फिर लौटे हैं रिया की आँखें भर आईं बाँसुरी की तान थम गई, और आसमान से चाँदनी उतरकर उन दोनों पर पड़ गई बुजुर्गों ने अगली सुबह देखा कि हीर और रांझा की समाधि के पास ताजे फूल रखे हुए हैं जो रात में किसी ने नहीं रखे थे उस दिन के बाद से गाँव में एक नई मान्यता फैल गई, कि सच्चे प्रेमी समय में मरते नहीं, बस नए रूप में लौट आते हैं, ताकि दुनिया को याद रहे कि प्रेम ही सबसे बड़ा सत्य है रात के अंधेरे में अब भी बाँसुरी की हल्की धुन सुनाई देती है कभी रिया के घर के आँगन से, कभी आम के बाग़ से
जैसे हीर और रांझा फिर से जी उठे हों, इस बार आधुनिक दुनिया की धड़कनों में
हीरांवन की चाँदनी – भाग 7.प्रेम का अंतिम स्वर
सालों बीत चुके थे हीरांवन अब एक छोटा लेकिन आधुनिक टाउनशिप बन चुका था
यहाँ स्कूल, कम्युनिटी हॉल और हर कोने में हीर‑रांझा इंस्पिरेशन सेंटर” के बोर्ड लगे थे
जो कभी लोककथा थी, अब एक इतिहास बन चुकी थी
रिया और आर्यमन अब हीरांवन के सांस्कृतिक केंद्र के प्रमुख बन चुके थे
हर वर्ष बसंत पंचमी पर वे “प्रेम उत्सव” का आयोजन करते
जहाँ दूर‑दराज़ से लोग आकर हीर और रांझा की कहानी सुनते,
और बच्चों को सिखाया जाता कि प्रेम सिर्फ दो दिलों का रिश्ता नहीं, बल्कि मानवता की सबसे शुद्ध भावना है
एक रात मंचन खत्म होने के बाद रिया ने आर्यमन से कहा,
“कभी‑कभी लगता है, जैसे हम इस बंधन से भी पुराने हैं। शायद आत्माएँ सच में लौटती हैं
आर्यमन मुस्कुराया, शायद, या फिर प्रेम ही आत्मा का दूसरा नाम है
उस रात चाँद पूरा था
हीरांवन का बाग़ अब भी वैसा ही हरा था जैसा सदियों पहले था
रिया और आर्यमन उसी आम के पेड़ के नीचे जाकर बैठे, जहाँ फूलों की खुशबू में कुछ अनकहा घुला था
रिया ने बाँसुरी उठाई, और पहली बार दोनों ने साथ‑साथ धुन छेड़ी
वो स्वर इतना गहरा था कि पेड़ की पत्तियाँ मानो सिहरने लगीं,
और हवा में एक पुरानी आवाज़ आई प्रेम वहीं रहता है, जहाँ आत्मा सत्य होती है
दोनों ने एक‑दूसरे की ओर देखा जैसे समय रुक गया हो
अचानक पूरे गाँव में लाइटें एक पल के लिए बुझ गईं,
पर बाग़ में एक हल्की चाँदनी की रेखा अब भी चमक रही थी
वही जो सदियों पहले हीर और रांझा के मिलन का साक्षी बनी थी
अगली सुबह गाँववालों ने देखा
समाधि के पास एक नया पत्थर रखा गया था, जिस पर कोई नाम नहीं लिखा था,
बस एक पंक्ति खुदी थी
सच्चा प्रेम कभी समाप्त नहीं होता, वह बस रूप बदलकर लौट आता है
वर्षों बाद जब इतिहासकारों ने हीरांवन की गाथा लिखी
उन्होंने इसका अंत इन शब्दों में दर्ज किया
जहाँ भी प्रेम की धुन बजेगी, वहाँ हीर और रांझा ज़रूर होंगे
कभी स्वर बनकर, कभी आंसू बनकर, कभी हवा में घुली कोई अनकही याद बनकर
और जब भी रातें शांत होतीं
लोग कहते सुनो हवा में वो बाँसुरी फिर से बज रही है
वो संकेत था कि हीरांवन सिर्फ एक गाँव नहीं
बल्कि अमर प्रेम की जीवित आत्मा बन चुका है.
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