DHARTI KE DO JANM
THE HEER RANJHA STORIES IS IMAGINARY
HEER RANJHA LOVER PART 2
10/20/2025
कहानी - धरती के दो जन्म
उत्तर प्रदेश के पिलखुआ गाँव में सावन की बरसात थम चुकी थी मिट्टी में भीग चुकी हवा में आम के बाग़ों की ख़ुशबू तैर रही थी गाँव की गलियों में सन्नाटा था, बस मंदिर की घंटियाँ गूंज रही थीं इसी गाँव में रहती थी हीर चौहान सुनहरी रंग की आँखों वाली, शांति में डूबी एक युवती, जो अकसर अपने सपनों में कोई अजनबी नाम सुनती “रांझा” कभी-कभी वह नींद से उठ बैठती, दिल तेज़ धड़कता और उसकी हथेलियों पर मिट्टी की सरसराहट महसूस होती जैसे किसी ने उसके हाथ थामे हों। पर जागने पर सब धुंधला हो जाता है
उधर, शहर के कॉलेज में पढ़ने वाला रांझा सिंह अपनी छुट्टियों में सालों बाद गाँव लौटा था उसके भीतर एक अनकही उदासी बसी रहती थी। गाँव पहुँचते ही, जब उसने पहली बार मंदिर के पास खड़ी हीर को देखा, उसके सीने में अजीब आग सी जल उठी। वो मुस्कुराया नहीं, बस ठिठक गया मानो वक्त रुक गया हो क्या हमने पहले कभी मिला है हीर ने पूछा रांझा के लबों पर एक अनजाना कंपन था शायद किसी और समय में उस रात हीर को सपनों में एक और दृश्य दिखा हरे-भरे खेत, तालाब किनारे बजती बांसुरी, और वह खुद लाल जोड़े में खड़ी मुस्कुरा रही है, पास में वही चेहरा जो रांझा का है फिर लपटें उठती हैं, चीख सुनाई देती है, और सब अंधेरे में डूब जाता हैअगले दिन गाँव में मेले का दिन था। भीड़ में रांझा और हीर अलग हो गए तभी मंदिर की सीढ़ियाँ चरमराईं हीर ने रांझा को पुकारा मत जाओ रांझा पलटा, और वही आवाज़ उसके भीतर
गूँजी जो सदियों पहले धरती ने सुनी थी फिर धीरे-धीरे दोनों अपने बीते जन्मों की यादें महसूस करने लगे वो वक़्त जब समाज की दीवारों ने उन्हें तोड़ दिया था, और मौत के बाद भी वो एक-दूसरे का नाम पुकारते रहे थे इस बार, वो नियति को बदलने आए थे गाँव के लोग उनकी बढ़ती नज़दीकियों को देखकर बातें करने लगे पर हीर और रांझा किसी की नहीं सुनते थे उन्हें लगता था कि यह जीवन सिर्फ एक अवसर है, अपने अधूरे वचन को पूरा करने का रात को, मंदिर के पीछे पुराने पीपल के पेड़ के तले, दोनों ने एक दीपक जलाया। रांझा ने कहा,अगर ये जन्म भी बिछड़ गया, तो मैं फिर लौटूंगा हीर मुस्कुराई, नहीं, इस बार हम मृत्यु नहीं, जीवन को वचन देंगे जैसे ही वो दीपक जलाकर प्रण ले रहे थे, हवा में हल्की सरगम उठी जैसे सदियों से प्रतीक्षा करती आत्माएँ चैन पा रही हों गांव के बुज़ुर्ग कहते हैं उस पेड़ के नीचे आज भी दो परछाइयाँ बैठी दिख जाती हैं वो जो प्रेम की सच्चाई को जन्मों से साबित कर रही हैं
दूसरा अध्याय- धरती की साक्षी
बरसात खत्म हो चुकी थी सूरज अब रोज़ और तेज़ चमकता, मगर गाँव के लोग हीर और रांझा पर ताने कसने लगे थे मंदिर की घंटियों के बीच अब फुसफुसाहटें गूंजती थीं ये लड़की शहर वाले से रोज़ मिलती है अच्छे घर की नहींहीर की माँ ने कई बार समझाया, बेटी, समाज की बातें सुन। लड़के घर-खानदान देखकर रिश्ते निभाते हैं पर हीर मुस्कुराती, माँ, ये रिश्ता धरती के समय से जुड़ा है, किसी घर से नहीं रांझा भी अब गाँव छोड़ने को तैयार नहीं था उसने खेतों में काम करना शुरू कर दिया ताकि लोग उसे बाहरी न समझें लेकिन कुछ गाँववाले उसे शरमिंदा करने लगे तेरे जैसे शहर वाले बस धोखा देते हैं रांझा ने बस इतना कहा मैं यहां किसी को धोखा देने नहीं, अपना अधूरा वादा निभाने आया हूँ एक शाम, जब सूरज डूब रहा था, गाँव के मुखिया ने पंचायत बुलाई हीर, अगर तूने रांझा से रिश्ता नहीं तोड़ा,
तो तेरा नाम हमारे गाँव के इतिहास से मिटा दिया जाएगा सबके सामने हीर ने शांत स्वर में कहा, इतिहास मिटाने से जन्म नहीं मिटते। अगर मैं गलत हूँ, तो धरती खुद फैसला करे वो सीधी मंदिर के पीछे पुराने पीपल के पास चली गई जहाँ कभी सदियों पहले उसी जगह दो आत्माओं ने आखिरी सांस ली थी रांझा उसके पीछे पहुँचा, भीड़ भी वहीं जमा हो गई हीर ने मिट्टी उठाकर माथे पर रखी, धरती माँ, आज तू साक्षी बन इस जन्म में, हम तेरे आसमान तले अपना जीवन एक करते हैं रांझा ने उसका हाथ थाम लिया पलभर को हवा रुक गई, पेड़ की पत्तियाँ सिहर उठीं, और दीपक की लौ बिना हवा के झिलमिलाई जैसे ब्रह्मांड खुद इस वचन का साक्षी बन गया हो उस रात भारी बारिश हुई। लोग बोले धरती ने खुद अपने बच्चों को आशीर्वाद दिया है अगली सुबह, गाँव की गलियों में कोई ताना नहीं गूँजा; सिर्फ मंदिर की घंटियों और बांसुरी की दूर जाती आवाज़ सुनाई दी हीर और रांझा एक हो गए,
तीसरा अध्याय- प्रेम की विरासत
साल बीत चुके थे पिलखुआ गाँव आज पहले जैसा नहीं रहा। पुराने रास्तों पर अब पक़ी सड़के थीं, लेकिन मंदिर के पीछे वह पुराना पीपल का पेड़ आज भी खड़ा था, अपनी जड़ों में सदियों की कहानियों को थामे लोग कहते हैं उस बरसात के बाद से हीर और रांझा कहीं नहीं दिखे। कुछ ने कहा कि वो गाँव छोड़कर अयोध्या की ओर चले गए, कुछ बोले कि वे उसी धरती में विलीन हो गए जहाँ उन्होंने वचन लिया था। पर सच किसी ने नहीं जाना वक्त बीतने के साथ गाँव में एक नई परंपरा शुरू हुई हर साल सावन पूर्णिमा की रात, जब धरती महकती है और हवा में ओस घुलती है, नवविवाहित जोड़े उस पीपल के नीचे दीप जलाते हैं और अपने जीवन की शुरुआत करते हैं। लोग कहते हैं वह दीपक अगर स्थिर जलता रहा, तो वो प्रेम सदियों चलता है जिस तरह हीर और रांझा का प्रेम चला अब गाँव के बच्चे मंदिर के पास खेलते हुए जब भी किसी से पूछते दादी,
क्या हीर-रांझा सच में थे तो बुज़ुर्ग मुस्कुराते हुए कहते, बेटा, वो ना किसी किताब में हैं, ना किसी ताजमहल में। वो तो इस धरती की हवा में हैं, जो हर प्रेमी के कानों में फुसफुसाती है धैर्य रखो, तुम्हारा रांझा तुम तक ज़रूर लौट आएगा एक दिन गाँव में शहर से आई एक युवती, जो फ़िल्म निर्माण की पढ़ाई कर रही थी, उस कहानी पर डॉक्यूमेंटरी बनाना चाहती थी। उसने जब पीपल का तना छुआ, तो एक झोंका आया, और मिट्टी से बांसुरी की हल्की सी धुन उठी वो ठिठकी और बोली शायद यह वही प्रेम है जो धरती ने संभाल रखा हैऔर उस रात, जब आसमान में चाँद भरा था, मंदिर की घंटियाँ अपने आप बज उठीं। लोग बोले, देखा हीर और रांझा फिर धरती के चारों ओर घूम रहे हैं अपने प्रेम को अमर रखने इस तरह, सदियों बीत गईं, पर उस गाँव की मिट्टी में आज भी जब कोई दीप जलाता है, तो हवा में वही धुन सुनाई देती है एक वादा जो दो जन्मों से ज़्यादा सच्चा था,
चौथा अध्याय- मिलन की आखिरी रेखा
सात साल बीत गए सावन की एक शाम पिलखुआ गाँव के मंदिर में एक भीड़ जमा थी गाँववालों में अफ़वाह थी कि मंदिर के पीपल तले आज भी किसी नई-पुरानी जोड़ी की परछाईं दिख जाती है। लोककथाएँ कहती थीं जिनका प्रेम अधूरा रहा, वह आत्माएँ राह देखती हैं फिर से मिलने की वहीं, गाँव में असमंजस पैदा हो गया जब हीर की माँ अचानक गंभीर रूप से बीमार हो गईं डॉक्टरों ने जवाब दे दिया। हीर टूट चुकी थी, उसका अपना संसार जैसे बिखरने लगा रांझा अपने ही डर से जूझता रहा उसे डर था कि कहीं दोबारा नियति उनका साथ न छीन ले जैसे पिछले जन्म में हुआ था बारिश की रात, मंदिर के पास पीपल तले, हीर अकेली बैठकर रो रही थी
आँसू मिट्टी को भिगो रहे थे रांझा उसके पास पहुंचा, मगर आँखों में बेबसी थी हीर बोली शायद इसी जन्म में भी, हमें अधूरा रहना लिखा है रांझा का गला रुंध गया, अगर खोना लिखा है, तो मिलने का वादा क्यों दिया था प्रभु ने हवा ठंडी थी मंदिर की घंटी एकाएक तेज़ बजी। हीर की माँ की हालत और बिगड़ गई। गाँव के लोग बोले शायद धरती फिर किसी बलिदान की प्रतीक्षा कर रही है पर इस बार नियति ने करुणा दिखाई। चार दिन की बीमारी के बाद हीर की माँ की आँखें खुल गईं। वे बोलीं रांझा मैंने तुम्हें आज़माया है, पा नहीं सकी मगर अब तुम्हारा प्यार ही मेरी संतान की असली नियति है सूरज की पहली किरण के साथ ही, मंदिर और गाँव के लोग इकट्ठा हुए हीर और रांझा ने फिर उसी पीपल तले अग्नि के दीपक सामने रखकर प्रण लिया ये जीवन, ये प्रेम अब किसी जन्म का मोहताज नहीं। अगर कभी दुख
फिर लौटे, तो भी हम मुस्कराते रहेंगे धरती की तरह, जो हर वर्ष नई फसल उगाती है भीड़ चुपचाप साक्षी रही। मंदिर में पहली बार शादी की शहनाई बजी, और सारे गाँव ने दोनों के संग मिलकर दीप जलाए। उसी दिन से वह जगह हर प्रेमी के लिए उम्मीद की रौशनी बन गयी हवा में अब भी बांसुरी की धुन तैरती है पर इस बार वह धीमी नहीं, मुस्कराती है और जब भी सावन की रिमझिम में कोई प्रेमी अकेलापन महसूस करे, तो उस पीपल के नीचे एक दीपक जरूर जला देता है क्योंकि अब वह कथा कभी अधूरी नहीं रही.
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