"तेरे नाम से आगे"
STORY
"तेरे नाम से आगे"
लखनऊ के एक पुराने मोहल्ले में रहने वाला आरव 25 साल का, थिएटर आर्टिस्ट, सपनों से भरा,अपनी ज़िन्दगी को रंगमंच और छोटे-छोटे रोल्स में जी रहा है। पैसे कम हैं लेकिन इरादे मज़बूत। दूसरी तरफ़, सना 23 साल की, क्लासिकल म्यूज़िक सीखने वाली, अमीर परिवार की बेटी,अपने पिता के सपनों में कैद है जहाँ उसका करियर सिर्फ़ "स्टेज शो" और "विदेश की पढ़ाई" तक सीमित है।
दोनों की दुनिया अलग-अलग है, लेकिन किस्मत एक शाम उन्हें जोड़ देती है।
पहली मुलाक़ात
एक छोटे से कॉलेज फेस्ट में आरव का नाटक और सना का ग़ज़ल प्रोग्राम साथ रखा जाता है। प्रोग्राम ख़त्म होने के बाद लाइट चली जाती है और हॉल में अंधेरा छा जाता है। उस अंधेरे में आरव गलती से सना से टकरा जाता है। वो सिर्फ़ उसकी आवाज़ सुनता है
"सॉरी, आप ठीक तो हैं?"
उस आवाज़ में ऐसा जादू था कि आरव हफ्तों उसे भूल नहीं पाया।
रिश्ते की शुरुआत
किस्मत फिर खेलती है। सना उसी थिएटर ग्रुप में बतौर वॉइस-ओवर आर्टिस्ट जुड़ती है जहाँ आरव काम करता है। धीरे-धीरे दोनों का रिश्ता दोस्ती से प्यार में बदलने लगता है। आरव को सना के साथ रहते हुए महसूस होता है कि उसका आर्ट अधूरा नहीं, पूरा है। वहीं सना को पहली बार ऐसा इंसान मिलता है जो उसे उसकी "आवाज़" और "कला" के लिए चाहता है, ना कि उसके नाम या पैसे के लिए।
संघर्ष की आंधी
लेकिन असली कहानी तब शुरू होती है जब सना के पिता को ये रिश्ता पता चलता है।
उनके लिए आरव "नौकरी-रहित थिएटर वाला" है, जो उनकी बेटी की दुनिया से मेल नहीं खाता। वे साफ़ कह देते हैं
"या तो तुम आरव को छोड़ो, या हमारा घर।"
सना के लिए ये चुनाव आसान नहीं था। पहली बार उसने अपने दिल और परिवार के बीच दीवार देखी।
सपनों का टूटना और बनना
आरव सना से कहता है
"अगर मेरी वजह से तुम्हें अपने परिवार से लड़ना पड़े, तो ये प्यार नहीं, ज़िद कहलाएगा।"
वो सना से दूर चला जाता है, थिएटर ग्रुप भी छोड़ देता है और मुंबई चला जाता है।
सना अकेली रह जाती है, लेकिन उसकी ग़ज़लों में अब दर्द उतर आता है। उसकी आवाज़ पूरे शहर में मशहूर होने लगती है। दूसरी तरफ़, आरव मुंबई में संघर्ष करते-करते एक बड़ा नाटककार बन जाता है।
पाँच साल बाद
एक म्यूज़िक और थिएटर फेस्टिवल में दोनों फिर मिलते हैं।
हॉल वही, मंच वही—बस कहानी नई।
सना की ग़ज़ल खत्म होती है और स्टेज पर आरव का नाटक शुरू होता है। नाटक का किरदार कहता है
"सच्चा प्यार भुलाया नहीं जाता, बस वक्त उसकी परख करता है।"
सना की आँखों में आँसू आ जाते हैं।
पर्दा गिरते ही दोनों backstage में मिलते हैं। सालों की दूरी एक पल में मिट जाती है।
क्लाइमैक्स
सना के पिता अब बूढ़े हो चुके हैं और अपनी बेटी की सफलता देख चुके हैं। वो समझ जाते हैं कि उनकी बेटी की ताकत उसी का चुनाव है। वे पहली बार आरव से कहते हैं
"तुमने मेरी बेटी से प्यार किया, लेकिन कभी उसका इस्तेमाल नहीं किया। आज मुझे लगता है कि वो तुम्हारे साथ ही पूरी है।"
फिल्म का आख़िरी सीन
बारिश हो रही है, भीड़ में आरव और सना एक-दूसरे का हाथ थामे खड़े हैं।
आरव कहता है
"इस बार हमें कोई अलग नहीं करेगा।"
और कैमरा ऊपर उठता है, शहर की चमकती रोशनी और बारिश में गूंजती सना की ग़ज़ल के साथ फ़िल्म ख़त्म होती है।
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